फूलगोभी की खेती-
(cultivate cauliflower )
फूलगोभी की खेती- Phoolgobhi ki kheti kaise kare full jankari .help you hindi
फूलगोभी की खेती- फूलगोभी की खेती करते वक्त विशेष ध्यान देना चाहिए जो निम्नलिखित है !
फूलगोभी की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए?
फूल गोभी शीतोष्ण कटिबंध की तरकारी है। इस फसल की सामान्य वृद्धि के लिए अधिक समय तक ठंडी जलवायु तथा वायुमंडल में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। अच्छे अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा रहता है। इस फसल को पाला बहुत हानि पहुंचाता है ।खेत पौधों को खेत में रुकते समय अधिक ताप होने पर फूलों का रंग पीला पड़ जाता है और फूल ठीक तरह से नहीं बढ़ते पौधों के प्रारंभिक जीवन में कम ताप होने पर तो पौधे में शीघ्र ही छोटे-छोटे फूल निकल आते हैं!
गोभी का पौधा कैसे तैयार किया जाता है-
फूलगोभी का बीज छोटा और पौधे कोमल होने के कारण उसे पहले रोपण क्यारी या पौधे घर में बोकर पौध तैयार करने की आवश्यकता होती है रोपण क्यारी में खेत की अपेक्षा पौधों की अधिक देखभाल रखी जाती है
1.बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा
फूलगोभी की विभिन्न किस्मों का बीज उचित समय पर बोना आवश्यक होता है। बीज को उसके बोने के सही समय से पहले या बाद में बोने पर ना केवल अंकुरण पर ही प्रभाव पड़ता है। बल्कि यदि उचित समय पर ना की जाए और किसी अन्य किस्म का बीज बोया जाता है। तो उसमें फूल जल्दी आ जाते हैं और फूलों का आकार भी छोटा रह जाता है। बीज की बुवाई उचित समय पर कर के इन प्रभावों से बचा जा सकता है फूल गोभी की विभिन्न किस्मों के बीज की नर्सरी में बुवाई का उचित समय निम्न प्रकार है-
1.बहुत अगेती किस्में - मई के अंत से जून के प्रथम सप्ताह तक
2.अगेती किस्में- जून माह में
3.मध्यम किस्में- मध्य जुलाई-अगस्त
4.पछेती किस्में- सितंबर अक्टूबर
NOTE- अगेती तथा मध्य मौसमी किस्मों की एक हेक्टेयर में रोपाई करने के लिए लगभग 600 से 700 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है । पछेती किस्म के लिए 375 से 400 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है। अगेती व मध्यम मौसमी किस्म की पौध तैयार करते समय तापमान अधिक और धूप तेज रहती है। जिसके कारण कुछ पौधे मर जाते हैं इसलिए बीज की मात्रा अधिक रखनी चाहिए !
2 .पौधे तैयार करने की विधि-
- फुल गोभी की पौध तैयार करने के लिए अच्छी और उचित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए। 1 हेक्टेयर की रोपाई करने के लिए लगभग 2 वर्ग मीटर क्षेत्र में तैयार की गई पर पर्याप्त रहती है। भूमि को अच्छी प्रकार से तैयार करने के बाद संपर्क कर लेना चाहिए ।और फिर उसमें 1 मीटर चौड़ी और 5 मीटर लंबी क्यारियां बना ली जाती है। क्यारियां जमीन से 15 सेंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए ।क्योंकि चारों ओर 30 सेमी चौड़ी नालियां भी बनानी चाहिए ।ताकि वर्षा का फालतू पानी बाहर निकल सके और इन्हीं नालियों में बैठकर क्यारियों से खरपतवार निकाले जा सके लगभग 8 सेंटीमीटर ऊपर सतह पर गोबर की सड़ी खाद्य पत्तियों की सड़ी गोबर खाद मिलाने के बाद खेतों को समतल कर देना चाहिए।
बोने से पहले कैप्टन या थाईराम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज से अवश्य शोधित कर लेना चाहिए ।अगेती फसल के लिए बोई गई पौध को तेज धूप था वर्षों से बचाने के लिए तैयारियों के ऊपर किसी छप्पर या पॉलिथीन की चादर से छांव करना चाहिए। इस प्रकार 4 से 6 सप्ताह में पौधे रोपने योग्य हो जाते हैं !
3.पौध की रोपाई
जिस खेत में धान की रोपाई करनी हो उसको उसकी अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए। और उसमें क्यारी बनाने चाहिए क्यारियों की लंबाई चौड़ाई अपनी आवश्यकता अनुसार रखी जा सकती है। पौध की रोपाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए क्योंकि रात में पौधे कम मरते हैं ।रुपए के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए ।फूलगोभी की विभिन्न किस्मों की पौधे लगाने से निम्नलिखित दूरी उचित पाई गई है!
1. अगेती किस्में - 45×45
2.माध्यमिक किस्में - 60×45
3.पछेती किस्में- 60×45
खाद तथा उर्वरक
फूल गोभी की फसल खेत से पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व खींचती है। 250 क्विंटल उपज देने वाली फसल 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम, फास्फोरस तथा 135 किलोग्राम पोटाश ले लेती है अतः फूल गोभी की बढ़िया उपज लेने के लिए खाद तथा उर्वरक दोनों ही डालनी चाहिए! फूल गोभी के लिए नाइट्रोजन की विशेष रुप से काफी मात्रा में जरूरत पड़ती है क्योंकि नाइट्रोजन की कमी से फूलों का आकार छोटा रह जाता है।
खेत की तैयारी के समय रोपाई से 3-4 सप्ताह पहले 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद के मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए । उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच कर करनी चाहिए। किसी कारणवश मिट्टी की जांच ना हो सके तो 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 7 किलोग्राम 5 किलोग्राम की दर से देना चाहिए ।
नाइट्रोजन की मात्रा और फास्फोरस पोटाश की मात्रा को अंतिम रूप से फैला देना चाहिए । और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को दो बार में रोपाई की 1 सप्ताह पहले और एक माह बाद तथा 10 से 15 किलोग्राम सुहागा से पहले खेत में मिला देना चाहिए। क्योंकि फूल गोभी की फसल बोरान की कमी के लिए बहुत नाजुक फसल लगाने के बाद पौधों पर बोरान की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 0.3 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का खड़ी फसल पर छिड़काव कर देना चाहिए।
सिंचाई और जल निकास
पहली सिंचाई पौध की रोपाई के तुरंत बाद की जाती है और दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 4 से 5 दिन बाद करनी चाहिए बाद किसी चाहिए अगेती फसल में सप्ताह में एक बार और पछेती फसल में 10 से 15 दिन के अंदर पर करते हैं फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना बहुत ही आवश्यक है
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों की रोकथाम के लिए TOK-E 25 दवा का भी प्रयोग किया जा सकता है।
5 लीटर दवा को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़कने से 1 वर्षीय खरपतवार नहीं हो पाते हैं। लगभग 40 से 45 दिन तक निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन बाद में जब इस दवा का प्रभाव समाप्त हो जाता है ।तो खरपतवार निकाल सकते हैं जिन्हें निराई करके निकालना चाहिए। वैसलीन दवा 1 किलो सक्रिय अवयव को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करके मिट्टी में मिलाने से खरपतवार नहीं उगते हैं।
5 लीटर दवा को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़कने से 1 वर्षीय खरपतवार नहीं हो पाते हैं। लगभग 40 से 45 दिन तक निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन बाद में जब इस दवा का प्रभाव समाप्त हो जाता है ।तो खरपतवार निकाल सकते हैं जिन्हें निराई करके निकालना चाहिए। वैसलीन दवा 1 किलो सक्रिय अवयव को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करके मिट्टी में मिलाने से खरपतवार नहीं उगते हैं।
फूल को धूप से बचाना-
फूलगोभी का सफेद फूल प्राप्त करने के लिए एवं फूलों को सूर्य की रोशनी से बचाने के लिए पत्तों द्वारा ढकने की प्रक्रिया को "ब्लांचिंग "कहते हैं ।
रोग नियंत्रण -
रोग नियंत्रण -
फूलगोभी की फसल में निम्नलिखित रोग लगते हैं-
अर्ध पतन(Damping off)
यह नर्सरी में लगने वाली मुख्य बीमारी है इससे पौधे की जड़ चढ़ जाती हैं ।बीमार पौधे भूमि की सतह से गल कर गिर जाते हैं।
रोकथाम
1.नर्सरी को फॉर्मेल्डिहाइड (20 से 30 मिली प्रति लीटर पानी )से उपचारित करना चाहिए।2.बीज को कैप्टन या थायराम से (2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज) से उपचारित करके बोना चाहिए।
3. बुवाई से पहले नर्सरी को मिट्टी को 0.2% ब्रेसिकाल के घोल से सिंचित कर देना चाहिए।
काला विगलन(Black rot)
यह रोग जीवाणु के कारण होता है- इस रोग के कारण सबसे पहले पत्तियों के किनारों पर वी आकार की हर महीने मुरझाए हुए स्थान दिखाई पड़ते हैं। जैसे जैसे रोग बढ़ता है पत्तियों की शिराओं का रंग काला या बुरा होने लगता है पूरी पत्ती का रंग पीला पड़ जाता है ।और वह मुरझा कर गिर जाती है पर ड्रिंक तथा शिराओं पर काले बिंदु दिखाई पड़ते हैं.
रोकथाम
1.कम से कम 2 वर्ष तक सरसों कुल के फसलों को फसल चक्र में सम्मिलित नहीं करना चाहिए।
2.बीजों को बोने से पहले 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट के लिए गर्म पानी में से उपचारित करना चाहिए।
3. फसल के मलबे को जला देना चाहिए ताकि इस पर पाए जाने वाले जीवाणु का विनाश हो सके.
पत्तियों का धब्बा रोग
यह रोग भी एक फफूद के द्वारा होता है- इस रोग के कारण पत्तियों पर बहुत से छोटे छोटे गोल तथा गहरे रंग के धब्बे बनते हैं ।इन धब्बों के केंद्रीय स्थान पर नीलापन लिए हुए खून की वृद्धि पाई जाती है इनमें बाद में चक्करदार रेखाएं बनने लगती हैं।रोकथाम
1.फसल को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
2.फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही 2.5 किलोग्राम इंडोफिल एम 45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
काला तार सदृश तना
यह फूल गोभी का नया रोग है जो कि सफ़ेद के कारण होता है- इस रोग के कारण रोगी फूलगोभी के पौधे का तना जमीन की सतह के पास तारकोल के समान काला पड़ जाता है।रोकथाम
इस रोग की रोकथाम पौधे की रोपाई के बाद 10 दिन के अंदर से 0.2 प्रतिशत ब्रेसीकाल के गोल से क्यारियों को सिंचित करके किया जा सकता है।
काली मेखला
यह रोग भी फफूंदी के कारण होता है- इस रोग के लक्षण पहले नर्सरी में ही बुवाई के 15 से 20 दिन पहले दिखाई देते हैं।
पत्तियों पर धब्बे बनते हैं जिनके बीच का भाग राख की तरह धूसर रंग का हो जाता है तनु पर धब्बे पंक्तिबद्ध होते हैं।
लालिमा रोग
यह रोग बोरान तत्व की कमी के कारण होता है ।फूल के बीचो-बीच और डंठल व पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं ।फूल कत्थई रंग का दिखाई देने लगता है रोगी पौधों की बढ़वार रुक जाती है। और डंठल खोखले से रह जाते हैं।
काली मेखला
यह रोग भी फफूंदी के कारण होता है- इस रोग के लक्षण पहले नर्सरी में ही बुवाई के 15 से 20 दिन पहले दिखाई देते हैं।पत्तियों पर धब्बे बनते हैं जिनके बीच का भाग राख की तरह धूसर रंग का हो जाता है तनु पर धब्बे पंक्तिबद्ध होते हैं।
1.बीज को बोने से पहले गर्म पानी में 50 डिग्री सेल्सियस 30 मिनट तक उपचारित करना चाहिए ।
2. तीन वर्ष का फसल चक्र अपनाना चाहिए जिसमें यथासंभव सरसों कुल की फसल सम्मिलित नहीं करनी चाहिए।
लालिमा रोग
यह रोग बोरान तत्व की कमी के कारण होता है ।फूल के बीचो-बीच और डंठल व पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं ।फूल कत्थई रंग का दिखाई देने लगता है रोगी पौधों की बढ़वार रुक जाती है। और डंठल खोखले से रह जाते हैं।रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए नर्सरी में पौधों पर 0.3% सुहागा के घोल का छिड़काव करें -तथा रोपाई के बाद मुख्य खेत में 0.5% बोरेक्स के घोल का छिड़का करें।
कीट नियंत्रण
फूलगोभी के मुख्य हानिकारक कीट अग्रलिखित हैं-आरा मक्खी
इस कीट की सुंडी काले रंग की लगभग 20 मिली मीटर लंबी होती है इसके शरीर के ऊपर 5 हानियां होती हैं ।यह सोनिया मुलायम पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं ।
रोकथाम
यदि फसल थोड़े क्षेत्र में उगाई गई हो तो सुंडियो को हाथ से पकड़ कर भी नष्ट किया जा सकता है।
रोकथाम
यदि फसल थोड़े क्षेत्र में उगाई गई हो तो सुंडियो को हाथ से पकड़ कर भी नष्ट किया जा सकता है। माहू
यह पीले हरे रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं जो पत्तियों की निचली सतह पर काफी संख्या में देखे जा सकते हैं इस कीट का आक्रमण दिसंबर से मार्च तक होता है इनकी आक्रमण के कारण फसल कमजोर हो जाती हैं व पत्ते थोड़े सिकुड़ जाते हैं जब आकाश में बादल छाए होते हैं और मौसम नम होता है तो इस कीट का प्रकोप बढ़ जाता है।रोकथाम
सायपेर्मेथ्रिन का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।डायमंड बैक मोथ
1. इस कीट की सुंडी पत्तियों में छेद करके कहती है जिससे पत्तियो में केवल नसे ही शेष रह जाती है यदि पत्तियों को धिरे धिरे हिलाया जाए तो छोटी छोटी हरी स्लेटी रंग की सुन्डिया नीचे गिर जाती है इसका आक्रमण अगस्त से दिसम्बर तक होता है।
1. मैलाथियान 5 .0 धूल का 30 और 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करना चाहिए।
यह किट अक्सर पौधों को छोटी अवस्था में ही नुकसान पहुंचाता है ।यह बीटल लगभग 2 मिली मीटर लंबे नीले हरे रंग के होते हैं। जो एक पौधे से पूरा कर दूसरे पौधे पर चले जाते हैं यह मुलायम पत्तियों को काट कर उन्हें छेद बनाते हैं और कभी-कभी पूरी पत्तियों को ही खत्म कर देते हैं।
रोकथाम
सेविन10 प्रतिशत धूल को 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करना चाहिए ।अथवा 0.15%सायपेर्मेथ्रिन घोल का छिड़काव करना चाहिए।
पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट
यह हरे रंग की चुनरी होती है- जो पत्तियों में जाला बुनकर अंदर से उसे खाकर क्षति पहुंचाती है कभी-कभी यह किस फसल को काफी हानि पहुंचा देती है.रोकथाम
इस कीट की रोकथाम के लिए 0. 15% सुमीसीडीन के घोल का छिड़काव करें अथवा नुवान का 0.05%(0.5 mli लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए।बंदगोभी की सुंडी
इसके बच्चे पत्तियों से भोजन प्राप्त करते हैं- जब बड़े हो जाते हैं तो यह सुंडियो के रूप में फेल कर पत्तियों को खा जाते हैं और पत्तियों को छलनी कर देते हैं ।
रोकथाम
रोकथाम
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