बेर की खेती कैसे करे -How to cultivate plum

बेर की खेती कैसे करे How to cultivate plum 


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                                                   बेर BER
                                     वैज्ञानिक नाम Zizyphus jujuba
                                              कुल -Rhamnaceae 

बेर की खेती 

उपयोगिता  

बेर गरीब लोगों का फल है यह सर्व सुलभ है और फसल के दिनों में बहुत सस्ता मिलता है अच्छे पके हुए पैर बहुत स्वादिष्ट लगते हैं देर में पोषक तत्व विशेषकर विटामिन A. B. C  और लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है इस में प्रोटीन कैल्शियम फास्फोरस प्रोटीन और विटामिन सी काफी मात्रा में पाया जाता है आयुर्वेद की दृष्टि से मीठा बेर ठंडा रूप और रक्त शुद्ध करने वाला होता है तथा आंखों की ज्योति भी बढ़ाता है यह भूख भी लगाता है सूखा पेड़ बलवर्धक सुपाच्य और पाचक है इसका सेवन थकावट ,प्यास  और भूख को दूर करता है। 

बेर में कौन-कौन से तत्व पाए जाते हैं 

जल 85.9 प्रतिशत, प्रोटीन 0.8 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 12.8 प्रतिशत, 0.1 प्रतिशत कैल्शियम 0.03 प्रतिशत। 

बेर की उत्त्पत्ति

बेर का जन्म स्थान भारत ही है और इसे हमारे देश में अत्यंत प्राचीन काल से उगाया जा रहा है शायद ऐसा ही कोई स्थान हो जहां बेर के पेड़ उपलब्ध ना हो कुछ विद्वान सीरिया को बेल की जन्मभूमि मानते हैं। 

भूमि और जलवायु 

बेर भूमि और जलवायु  दोनों ही दृष्टि से बहुत अच्छा फल है और मौसम की विभिन्न अवस्थाओं में उड़ सकने की अद्भुत क्षमता रखता है यह अधिक गर्मी लो और पाली को भी सहन कर लेता है ऐसी कोई भूल नहीं यहां पर कौन हो गया जा सके।  

बलुई से लेकर मृतका  भूमि तक में बेर पनप सकने की क्षमता रखता है और सुखा को सहन करने में  भी समानता नहीं रखता कटीला होने के कारण या अपनी रक्षा स्वयं कर लेता है और जंगली पशु भी से हानि नहीं पहुंचा पाते हैं ऊसर भूमि  में प्रायः  कोई फल शाक भाजी अथवा अन्य फसल ऊगता है   लेकिन बैर भी उसमेंसफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। 

 बेर के उत्पादन क्षेत्र कौन-कौन से हैं

मध्य प्रदेश के जंगलों में बेर के वृक्ष और पौधे अधिकतम पाए जाते हैं बड़ौदा अहमदाबाद नागपुर लखनऊ और बनारस इत्यादि स्थानों में बैर की बहुतायत पाई जाती है बड़ौदा में 125 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 250 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बेर के वृक्ष बाग लगे हुए हैं। 

 पूर्वी आज प्रदेश में बेल के फल की खेती बहुत बड़े क्षेत्रफल में की जाती है बिहार के शाहाबाद जिले और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुख्य वाराणसी जिले में बहुत उत्तम किस्म का बेर उगाया जाता है मथुराअलीगढ़ जिले में सहपऊ और सासनी (हाथरस) क्षेत्र के बेर बहुत प्रसिद्ध हैं। 

खाद और उर्वरक

बेर के प्रत्येक पौधों में प्रतिवर्ष 100 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 ग्राम फास्फोरस तथा 50 ग्राम पोटाश खाद देना चाहिए बेर के पौधे में पर्याप्त खाद दिए जाने पर उनकी उपज और फलों का आकार तथा गुणों में सुधार होता है देर में पूर्वक जुलाई महीने में साफ मौसम में देना चाहिए। 

 तने से लगभग आधा मीटर की दूरी छोड़कर बेर के पौधे पेड़ के चारों और खाद की टक्कर और फिर भूमि को और अथवा कुदाल से कूदकर उसे मिट्टी में मिला देना चाहिए पौधों के अच्छे विकास के लिए 20 से 25 किलोग्राम गोबर की खाद प्रतिवर्ष प्रति पेड़ वर्षा के मौसम में देनी चाहिए। 

 प्रवर्धन 

बेर के पौधों को दो विधियों से तैयार किया जाता है-

 1. बीज बोकर  2.मुकुलन द्वारा   3. चोटी कलम लगाना 

1. बीज   बोकर -बेर के प्रवर्धन का यही ढंग सबसे अधिक प्रचलित हैं बीज गड्ढों में ही बोलना चाहिए क्योंकि बेल का पौधा स्थांतरण सहन नहीं कर सकता 20 फरवरी मार्च में बोए जाने पर 20 से 30 दिन में अंकुरित हो जाता है पेड़ का बीज वर्षा ऋतु में भी बोया जा सकता है। 

2.मुकुलन द्वारा -अच्छी फल  प्राप्त करने के लिए   मुकुलन द्वारा ही बेर  को लगाना चाहिए मुकुलन द्वारा पाबंदी या कॉल मी बैक तैयार किए जाते हैं 1 वर्ष की आयु में के तने पर भूमि से 30 से 40 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर वर्षा ऋतु में कल्याण किया जाता है। 

3.चोटी कलम लगाना- देश के विभिन्न भागों में बंजर पड़ी भूमियों या खेतों की मेड़ों पर आसपास जंगली अवस्था में उगते हुए बेर के पेड़ काफी दिखाई पड़ते हैं। 

चोटी कलम लगाकर अच्छी स्थिति में लाया जा सकता है और उनसे उन्नत किस्म की फल प्राप्त किए जा सकते हैं 20 कलम बांधने के लिए जंगली वृक्ष को भूमि की सतह से 1 से 2 मीटर की ऊंचाई पर दिसंबर-जनवरी में काट दिया जाता है फिर कटी हुई चोटी के थोड़ा नीचे से निकलने वाली शाखा में से सबसे स्वस्थ शाखा को छोड़कर शेष काट देते हैं इसे चुनी हुई शाखा की मोटाई जब पेंसिल की मोटाई के बराबर हो जाती है तो उस पर डाले चश्मा कल ही लगा दी जाती है। 

बेर के पौधे कैसे लगाए

मुकुलन विधि द्वारा तैयार पौधों को गड्ढा में लगभग 7 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है अधिकांश बेर के पौधों को बाघ के किनारों पर लगाया जाता है और इस प्रकार यह पेड़ कुछ सीमा तक बाद में लगाए गए अन्य पेड़ों की लू आंधी और पहले से भी रक्षा करते हैं बेर के पेड़ तैयार करने के लिए झरबेरी जैसी किस्मों के बीज से उगाए गए पौधों से चश्मा बंदी की जाती है बेर के स्कंद को भूमि से एक सही एक बटे दो(1/2 ) मीटर की ऊंचाई पर काटकर नई शाखाओं की कलम में लगाई जाती हैं। 

बेर की सिंचाई

बेर के पेड़ो में जाड़े के दिनों में प्रतिवर्ष एक अथवा दो सिचाईयाँ केर देने पर पेड़ खूब फलते -फूलते है। 

उपज 

बेर के पेड़ों से प्रतिवर्ष लगभग 100 से 200 किलोग्राम भार प्राप्त होते हैं। 

किट  नियंत्रण 

फल मक्खी -बेर को सबसे अधिक हानि फल मक्खी से होती है इस मक्खियों की लौंडिया फलों को खाती हैं जिसके कारण फल खाने में तेरे मेरे हो जाते हैं फल के अंदर बीज के चारों तरफ खाली स्थान बन जाता है और फल चढ़कर बेकार हो जाता है। 

रोकथाम अक्टूबर नवंबर के महीने में जब छोटे होते हैं उस समय दो बार 0.2 प्रतिशत सुमिसीडीन  के घोल का छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर तीसरा छिड़काव 0.0 5% मैलाथियान के घोल का फरवरी के महीने में छिड़काव करना चाहिए। 


बेर बिटिल -बेर डिटेल तथा अन्य पत्तियां खाने वाले कीटों के आक्रमण होने पर जून जुलाई के महीने में 0.2% से भिन्न के घोल का छिड़काव करना चाहिए। 

रोकथाम -छोटे पौधों पर बी० एच० सी 10% धूल अथवा फ़ोलीडाल 2 प्रतिशत धूल का भुरकाव करना चाहिए। 

रोग नियंत्रण

पाउडर की तरह फफूंदी(Powdery Mildew )

बेर में अधिक रोग नहीं लगते इनमे  मुख्य रूप  पाउडर की तरह फफूंदी रोग लगता है यह रोग जाड़े में दिखाई देते है। 

रोकथाम -जिससे पत्तियां तथा फल बहुत बुरी तरह प्रभावित होते हैं इस पर एक प्रकार से सफेद पदार्थ की परत चढ़ जाती है प्रभावित फलों की पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक जैसे सल्फैक्स  अथवा इलोसाल की 3 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें पहले फिर का फूल आने से पहले और 15 दिन के अंतर पर करते रहे।