प्याज की खेती उन्नत शील कैसे करें How to cultivate onion.
प्याज
(Onion)
वानस्पतिक नाम- Allium cepa L.
कुल -Liliaceae या Alliceae
प्याज का मूल स्थान एशिया महाद्वीप है इसमें विटामिन अधिक मात्रा में नहीं पाया जाता प्रोटीन की इसमें कमी होती है इसमें खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं प्याज में रोगों के निवारण करने का भी गुण होता है प्याज एक प्रकार का भूमिगत तना है जो की पत्तियों की अनेक परतों से घिरा होता है इन पत्तियों के रस में एक गंदगी युक्त योगिक होता है जिनके कारण इसमें बदलाव आते हैं लेकिन इसमें कुछ ऐसे गुण होते हैं की बदबू की अपेक्षा कर के लोग प्याज का खूब प्रयोग करते हैं क्या जायज है और लोग सो जाते हैं रक्त शोधन और रक्त वर्धक औषधि भी है प्याज का तीखापन लाल प्रोफाइल डाई सल्फाइड नामक पदार्थ के कारण होता है
भूमि
प्याज हर प्रकार का भूमि में उगाई जा सकती है परन्तु बलुई दोमट या दोमट भूमि में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है दोमट भूमि में प्याज की पैदावार सर्वोत्तम होती है भारी भूमि में प्याज की खेती नहीं करनी चाहिए क्योकि ऐसी भूमि में प्याज कन्द की वृद्धि अच्छी नहीं होतीभूमि की तैयारी
प्याज के लिए भूमि की गहरी जुताई की आवश्कता नहीं होती क्योकि इसकी जड़े बहुत गहरी नहीं जाती लगभग 4-5 बार की जुताई पर्याप्त है प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पटेला चला देना चाहिए जिससे मिट्टी भुरभुरी खेत की तैयारी के समय ही उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर का सड़ा हुआ खाद भी डालना चाहिएबीज और बुवाई
बीज बोने का समय तथा बीज की मात्रा
उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्याज की नर्सरी में बुवाई अलग अलग समय पर की जाती है
मैदानी क्षेत्र
मैदानी क्षेत्रों में बीज को नर्सरी में अक्टूबर के अंत से नवंबर के मध्य तक होना चाहिए खरीफ फसल की बुवाई जून में करते हैंनीचे पहाड़ी क्षेत्र
अक्टूबर में बीज बोते हैंऊंचे पहाड़ी क्षेत्र
फरवरी-मार्च में बीज बोते हैं बीज गुप्त काल में उत्पन्न होना चाहिए आगे आगे कर और निकल आते हैं लगभग 8 किलोग्राम होते हैंपौध तैयार करना
एक हेक्टेयर की रोपाई करने के लिए 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में की गई पौध पर्याप्त रहती है पौधशाला किसी ऐसे स्थान पर बनानी चाहिए जहां पर सिंचाई और पानी के निकास का अक्षर प्रबंध हो भूमि समतल और उपजाऊ होनी चाहिए आस-पास छाया वाले वृक्ष नहीं होने चाहिए जिस रूम में पौध तैयार करनी हो उसकी अच्छी प्रकार से जुताई करके मिट्टी को अच्छी प्रकार से भुरभुरा बना लेनी चाहिएअब इस भूमि में पौध तैयार करने के लिए 5 मीटर लंबी तथा 1 मीटर चौड़ी क्यारियां भूमि से लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर दूरी बना लेनी चाहिए प्रत्येक क्यारी में 10 से 15 किलोग्राम गोबर की खाद तथा 10 ग्राम दानेदार मिट्टी में मिला देना चाहिए इसके बाद क्या तैयार करने के बाद बीज को दी नाशक दवा जैसे हाय राम आदि से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए
इस प्रकार की मिट्टी में समान रुप से देना चाहिए गोबर की खाद का मिश्रण के प्रकार क्यारियों में 8 से 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइन खींचकर बीज को लगभग 20 मीटर की गहराई तक देने के बाद बाल्टी से हल्की सिंचाई कर दें में सूखी घास एक दिन के अंतर में सिंचाई करते रहना चाहिए 20 + हो जाए तो घास की पाठ को हटा देना चाहिए ताकि छोटे पौधों को धूप और हवा की आवश्यकता अनुसार निकालते रहना चाहिए 43.12 कर देने से बीमारी आदि का भाव भय नहीं रहता लगभग 6 से 7 दिन बाद योग हो जाते हैं क्योंकि पौधे लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर होते हुए जाते हैं
पौधों की रोपाई
तैयार खेत में पौध की रोपाई से पूर्व सिंचाई के साधन के अनुसार क्यारियां और सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिए क्यारियों में पौधों की रोपाई के लिए रस्सी की सहायता से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारें बना लें इन कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हुए 2.5 सेमी गहराई पर पहुंच की रोपाई करें एक स्थान पर एक से अधिक पौध नहीं लगानी चाहिएपौध की रोपाई जहां तक संभव हो दोपहर के बाद करनी चाहिए और रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए मैदानी क्षेत्रों में दिसंबर से जनवरी तक फरवरी माह में प्याज की रोपाई करने से पहले पौधे के ऊपरी भाग को काट देना चाहिए जिससे कि पौधे को स्थापित होने में मदद मिलती है
खाद तथा उर्वरक
रोपाई के 3 से 4 सप्ताह पहले खेत की तैयारी के समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद भूमि में अच्छी प्रकार से मिला लेनी चाहिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी के जांच के अनुसार करना चाहिएयदि मिट्टी की जांच संभव ना हो सके तो बलुई दोमट मिट्टी में 2 किलोग्राम, नाइट्रोजन 50 किलोग्राम, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा को आखिरी जुताई के समय खेत में अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए अच्छा तो या रहता है कि तीनों उर्वको के मिश्रण कुंड में 5 से 7 सेमि की दूरी पर करनी चाहिए नाइट्रोजन की मात्रा को रोपाई के 1 माह बाद खड़ी फसल में लगा दे
सिंचाई तथा जल निकास
प्याज की अच्छी उपज लेने के लिए भूमि में पर्याप्त नमी बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है सिंचाई यों की संख्या मिट्टी की किस्में तथा मौसम पर निर्भर करती है प्रयोगों में देखा गया है कि फसल की प्रारंभिक अवस्था में प्याज को कम पानी की आवश्यकता पड़ती है परंतु बाद में अधिक सिंचाई करनी पड़ती है प्याज को 10से 12 सिचाईयो की आवश्यकता पड़ती हैजाड़े के दिनों में 12 से 15 दिन के अंतर पर तथा गर्मियों में 7 से 8 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए सिंचाई पूरे खेत में एक समान और हल्की करनी चाहिए कई दिन तक खेत सुखा रहने के बाद एकदम भारी सिंचाई करने से प्याज का छिलका फटने लगता है तथा प्याज की पत्तियां सूख कर गिरने लगती है तो सिंचाई बंद कर देनी चाहिए फसल पक फसल पकने के बाद भी सिंचाई करते रहना चाहिए
फसल पकने के बाद भी सिंचाई करते रहने पर प्याज की भंडारण क्षमता कम हो जाती है और प्याज जल्दी खराब हो जाती है प्याज के खेत में कभी भी आवश्यकता से अधिक पानी नहीं भरने देना चाहिए अन्यथा प्याज का कंद फट जाता है और सड़ भी जाता हैआवश्यकता से अधिक पानी निकाल देना चाहिए
खरपतवार नियंत्रण
प्याज की फसल में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, मोरेला, प्याजी, मोथा, चिरैता, मकड़ा, डूब, जंगली चौलाई, सत्यानाशी खरपतवार उगते हैं जिनको खेत से बाहर निकालना जरूरी होता है अन्यथा पौधों की बढ़वार कम होती है और प्याज की गांठे छोटी रह जाती हैं प्याज की फसल में पंक्तियों से पंक्ति की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी इतनी कम होती है कि हाथ से निराई गुड़ाई करना कठिन हो जाता हैनिराई-गुड़ाई करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए अच्छा तो यह रहता है कि खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाए टोक ई 25 की 6 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़काव करने से खरपतवार नहीं उग पाते हैं बेशालीन को(१ किलो सक्रिय अवयव) भी प्याज रोपने से पहले खेत में छिटककर मिट्टी में हैरों से अच्छी प्रकार मिला देने पर खरपतवार नहीं उगते हैं यदि इन रसायनों के छिड़काव के बाद भी कुछ खरपतवार उगाते हैं तो वह रोपाई के 45 दिन के भीतर एक बार निराई करके उन्हें निकाल देना चाहिए
रोग नियंत्रण
प्याज में लगने वाले प्रमुख रोग तथा उनकी रोकथाम के उपाय नीचे दिए जा रहे हैंबैगनी धब्बा
यह रोग फफूंदी के कारण होता है यह रोग पत्तियों बीज स्तम्भों और प्याज की गाँठो पर लगता है रोग ग्रस्त भाग पर छोटे सफेद धसे हुए धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बैगनी रंग का होता है और उनके चारों ओर कुछ दूरी पर फैला एक पीला क्षेत्र पाया जाता हैरोग के प्रभाव से पत्तियों और तने सूख कर गिर जाते हैं रोग की अवस्था में भी कंद गलने लगते हैं
रोकथाम
1 बीज को थायराम नामक दवा से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोलना चाहिएइंडोफिल एम 45 की दूध से 5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8:00 से 10:00 दिन के अंदर पर छिड़काव करें लगभग 4 से 5 गांव करें
जिस खेत में रोग लगा हो उस में आगामी 2 से 3 साल तक प्याज और लहसुन नहीं बोना चाहिए
मृदु रोमिल आसिता (Downy midew)
यह रोग भी फफूदी के कारण होता है इस रोग के लक्षण पत्तियों पर धब्बे के रूप में होते हैं यह धब्बे आकार में अंडाकार से लेकर आयताकार तक होते हैं इनका रंग पीला होता है जिसके कारण पत्तियों में हरे पदार्थ की कमी के लक्षण उत्पन्न होते हैं रोग के प्रभाव से पत्तियों का रोग ग्रस्त भाग सूख जाता है रोगी पौधों से प्राप्त कंद आकार में छोटे होते हैं और साथ ही इनकी भंडारण क्षमता भी कम हो जाती है
रोकथाम
1 इंडोफिल एम 45 की 2.5 किग्रा मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोग के लक्षण दिखाई देते ही छिड़काव करें इसके बाद 7 से 8 दिन के अंतर पर छिड़काव करें2 . खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करें
जीवाणु मृदु विगलन(Bacterial shoft rot)
यह रोग एक जीवाणु द्वारा होता है प्याज के कंदो का भंडार गृह में सड़ना एक समस्या है यद्यपि इस रोग का प्रारंभिक आक्रमण पौधों के परिपक्व होने की अवस्था में खेत में ही मिलता है किंतु खेत में साधारण रोग के लक्षण दिखाई नहीं देते परंतु रोग का भीषण प्रकोप होने पर कंद सङने के परिणाम स्वरुप पौधे अचानक मुरझा जाते हैं खोदने पर ऐसे कंद चिपचिपे सङे गले निकलते हैरोकथाम
1. कंदो को अच्छी प्रकार से सुखा कर उनके ऊपरी छिलकों की कटाई करके रखना चाहिए2 . कंदो को हवादार तथा काम पानी वाले गृहो में रखना चाहिए
ग्रीवा विगलन(Neck rot)
यह रोग बोट्राइटिस (Botrytis) नामक फफूदी की कई जातियों द्वारा होता है इस रोग के कारण प्याज के शल्क पत्र सडकर जलयुक्त धब्बे पैदा करते हैं कंदो के उत्तक मुलायम होकर सिकुड़ जाते हैं जो देखने में परिपक्व से लगते हैं और कंद सूखे से लगते हैंरोकथाम
1 .प्याज की कंदो को उखाड़ते समय चोट से बचाना चाहिए भंडारण करते समय कंदो के शीश को पूर्ण रूप से सुखा लेना चाहिए2 . वैज्ञानिक मत है कि प्याज की सफेद किस्मों में यह रोग जल्दी लगता है इसीलिए जहां तक संभव हो रंगीन किस्मो की खेती की जाए
प्याज का कंड (Smut) रोग
यह रोग भी फफूंदी के द्वारा होता है इस रोग के प्रथम लक्षण बीज अंकुरण के बाद जल्दी बीजपत्र पर दिखाई पड़ते हैं रोगी पत्ति तथा बीज- पत्रों पर काले रंग के ही स्पॉट बनते हैं इन स्पॉटों के फट जाने पर उनमें से असंख्य बीजाणु काले चूर्ण के रूप में निकलते हैं यह रोग एक पत्ती से दूसरी पत्नी पर फैलता हुआ पौधों के अंदर ही अंदर कंद की तरफ बढ़ जाता है रोगी पौधे 3 से 4 सप्ताह बाद मर जाते हैंरोकथाम
1 . बीज को बोने से पहले थायराम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए2. मृदा को मैथिल ब्रोमाइड (1 किलोग्राम प्रति 25 वर्ग मीटर )के घोल से पौध रोपण से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए
कीट नियंत्रण
प्याज की फसल को थ्रिप्स और मैंगट काफी नुकसान पहुंचाते हैं इसके अलावा तंबाकू की सुंडी व रिजका की सुंडीथ्रिप्स (चूरदा )या भुनगा
यह किट लगभग 1 मिली मीटर लंबे बेलनाकार व पीले रंग के होते हैं कौन प्रौढ़ व् शिशु दोनों ही प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं इनके घरों चने व चूसने वाले मुख्य अंग होते हैं जब इन का प्रकोप अधिक होता है तो पत्तियों की नौकरी कत्थई रंग की हो जाती हैं तथा सूखी हुई सी प्रतीत होती हैं बाद में पूरा पौधा पीला या बुरा हो जाता है और सोच कर जमीन पर गिर जाता हैरोकथाम
इस कीट की रोकथाम के लिए 0.1 15 परसेंट साहित्य में तीन अथवा अथवा 016 2% 7 का 600 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए अथवा 750 मिलीलीटर मैलाथियान ऐसी 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करेंमैंगट (प्याज की मक्खी)
वयस्क मक्खी भूरे काले रंग की करीब 6 मिलीमीटर लंबी होती हैं इसके लार्वा(सुन्डिया ) जो सफेद व 8 मिली मीटर लंबे होते हैं प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं इसके लार्वा जमीन के अंदर वाले तने व गाँठ में छेद करके उनके अंदर के मुलायम भाग को खाते हैं जिसके कारण पौधे धीरे-धीरे मुरझाकर सूखने लगते हैं पौधे को उखाड़कर देखने पर गांठ का मांसल भाग खोखला दिखाई देता है केवल बाहरी भाग ही बचा रहता है इस तरह खेत में पौधों की संख्या बहुत कम हो जाती हैरोकथाम
1 .बुवाई के समय खेत में थीमेट नामक दवा 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें -2 . जब मक्खियां दिखाई दें उस समय साईपर्मेथ्रिन 0 . 15 %या मैलाथियान के 0.05% घोल का छिरकाव अच्छा रहता है छिड़काव 15 दिन के अंतर पैर करे
3.इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि यदि फसल में थिमेट 10 जी का प्रयोग किया गया है तो इस दवा को डालने के बाद 45 दिन तक प्याज का कोई भी भाग खाने के काम ना ले
तंबाकू की सुंडी
इस कीट की सुंडीयां बेलनाकार , हरे -पीले रंग की होती हैं पीठ पर काले धब्बे होते हैं, नवजात सुन्डिया सामूहिक रूप से पत्तियों की निचली सतह को खाती हैं तथा छोटे मुलायम पौधों को नष्ट कर देती हैं पुरानी पौधों की पत्तियों को खुरच -खुरच खाती हैं जब यह सुन्डिया बड़ी हो जाती है तो अकेले ही पत्तियों को चट कर जाती हैं यह एक सर्वभक्षी कीट है जो प्याज के अलावा तंबाकू, टमाटर, लहसुन आदि फसल को खाकर के नुकसान पहुंचाता हैरोकथाम
1.अंडों व सुंडियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए2.अधिक प्रकोप होने पर 0 . 15% साइपरमेथ्रिन के घोल फसल पर छिड़काव करें
3 .फसल पर 4% सेविंन धुल का भुरकाव कर सकते हैं
रिजका की सुंडी
यह कीट भी प्याज की फसल को कभी-कभी हानि पहुंचाता है इस किट की सुंडी लंबी होती है और इसका रंग हरा भूरा होता है ऊपर की तरफ काले रंग की टेढ़ी -मेढ़ी धारियां होती हैं बगल में पीली धारियां होती हैं यह किट प्याज, मिर्च, बैंगन, मूली आदि की पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचा आता हैरोकथाम
1.अंडों व सुंडियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए2.अधिक प्रकोप होने पर 0 . 15% साइपरमेथ्रिन के घोल फसल पर छिड़काव करें
3 .फसल पर 4% सेविंन धुल का भुरकाव कर सकते हैं
बोल्टिंग
गांठ के लिए उगाई जाए वाली फसल में ही कभी - कभी पुष्प डंठल निकल आते है जिससे प्याज की गुणवत्ता घट जाती है पुष्प डंठल को निकलना ही बोल्टिंग कहलाता हैइस प्रकार डंठल ही गांठ ने एकत्रित भोजन का उपयोग करते है जिसके कारण प्याज हलकी हो जाती है जल्दी रोपी गई फसल में बोल्टिंग अधिक है
उपज
उन्नत तौर तरीको से खेती करने पर एक हेक्टेयर से प्याज की 200 -250 कुंतल तक आसानी से मिल जाती है (हरी प्याज 60- 70 )तो कैसे लगी यह जानकारी? कमेंट में जरूर बताये !