केला की खेती कैसे करे How to cultivate banana

 केला की खेती कैसे करे How to cultivate banana

                                           
 केला की खेती कैसे करे

केले की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए

 केला एक गर्म प्रदेश एक  फल है ,या गर्म और तर जलवायु चाहता है और अधिकतर नम जलवायु में फलता -फूलता है हमारे प्रदेश में केले को मुख्यतः गृह वाटिकाओं के किनारे लगाने का चलन है लेकिन देश के दक्षिणी भाग में केले के बड़े-बड़े बाग लगाए जाते हैं जहां केले को व्यापारिक स्तर पर लगाया जाता है अकेला पाले को सहन करने की क्षमता रखता है। लेकिन तेज हवाओं से पौधों को हानि होती है अकेला विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जाता है हमारे देश में समुद्र की सतह से 1000 मीटर ऊंचे स्थानों तक में केले की खेती की जाती है लेकिन जिन स्थानों में तेज धूप और अधिक वर्षा होती है वहां अकेला अच्छी उपज देता है। 

केले की उन्नत किस्मे

उत्तर प्रदेश में लगभग मालभोग, अमृत सागर, केला हरी  छाल, बसराई ड्वार्फ , बलिया हजारा,अलपान केले की किस्में उगाई जाती हैं। 

भूमि की तैयारी 

गहरी उपजाऊ अधिक पानी धारण करने की शक्ति रखने वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है तालाब के किनारे भारी तथा नाम भूमि में भी अकेला अच्छी उपज देता है लेकिन साधारण केला किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है यदि इसमें गोबर का खाद पर्याप्त मात्रा में देने के लिए उपलब्ध हो तथा साथ ही साथ पानी का अच्छा निकास हो। 

खाद तथा उर्वरक

केले के पेड़ पौधों के लिए प्रतिवर्ष 250 ग्राम नाइट्रोजन 100 किलोग्राम फास्फोरस अम्ल तथा 200 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है नाइट्रोजन चार बराबर मात्रा में अगस्त-सितंबर मार्च-अप्रैल में दें अमल की पूरी मात्रा पौधों की नर्सरी लगाने के 2 या 3 दिन पहले गड्ढे में मिला दे पोटाश की आधी मात्रा नाइट्रोजन के साथ अगस्त में तथा शेष आधी मात्रा अप्रैल में दें केले की अधिकतम उपज लेने के लिए 18 किलोग्राम गोबर की खाद प्रतिबाधा लगाते समय 2.250 किग्रा अंडे की खाली टॉप ड्रेसिंग द्वारा तीन बार में दी जानी चाहिए। 

केले  के पौध लगाने की विधि

केला अधोभूस्तरी अर्थात सकर द्वारा प्रवर्धन  किया जाता है यह दो प्रकार के होते हैं तलवार सकर  और पानी वाले शकर।  तलवार शकर की पुत्तियां कम चौड़ी तलवार के आकार की होती हैं। और नए पौधे तैयार करने के लिए इनको सबसे अच्छा माना जाता है, पानी वाले शकर की पत्तियां चौड़ी होती हैं और पौधे भी कमजोर होते हैं अधोभूस्तरी ऐसे पौधों से लेना चाहिए

 जो ओजस्वी और परिपक्वव  हो,  और किसी प्रकार के रोग और कीड़े से प्रभावित ना हो 3 से 4 महीने पुराने शकर प्रवर्धन के लिए बहुत अच्छे होते हैं केले के प्रकंद से भी नई पौध तैयार हो सकते हैं बहुत अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए पूरा प्रकंद यह इस के टुकड़े काटकर प्रयोग करना चाहिए यह ध्यान रहे कि प्रत्येक भाग में एक कली हो जहां से नया प्ररोह निकल सके इन से पौधा बनने में अधिक समय अवश्य लगेगा परंतु पैदावार पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा मात्र पौधों की जड़ों से काटकर निकालते हैं साधारणता 7 से 90 सेंटीमीटर की ऊंचाई की छुट्टियां उपयुक्त होती है। 

अधोभूस्तरी या पुत्तियो  का रोपण 

केले के पौधे खेत में वर्षा ऋतु में जुलाई से लेकर सितंबर तक रोक पाए जाते हैं केले गड्ढे अथवा नालियों में बह जाते हैं अकेला बोने के लिए मई में 1 /2  मीटर व्यास के 1 /2  मीटर गहरे गड्ढे 2 *1. 5  मीटर की दूरी पर खाद खोज लेना चाहिए और उन्हें गोबर की खाद में मिट्टी मिलाकर जुलाई के प्रारंभ में भर देना चाहिए यदि नालियों में अकेला दो ना हो तो 50 सेमी चौड़े और 50 सेंटीमीटर गहरी नालियों 2 मीटर की दूरी पर और लेनी चाहिए इन में प्रति हेक्टेयर 200 कुंटल गोबर की खाद डाल देनी चाहिए

 उसके बाद इन गड्ढों में 1.5 मीटर की दूरी पर नालियों के बीच में केले की पौध को बोल देना चाहिए रोपाई से पहले प्रत्येक पौधों को तेज और जड़ से काट दीजिए और भूमिगत तने के कटे हुए भाग को तेरे साथ 0.25 प्रतिशत घोल में 1 मिनट तक दुआएं फरवरी-मार्च का समय ही खेत में केला रोकने के लिए सही रहता है लेकिन यह उन स्थानों में संभव है जहां पर पर्याप्त सुविधा हो। 

केले के पौधे की सिंचाई कैसे करें 

केले में सिंचाई की काफी आवश्यकता होती है।  वर्षा ऋतु के उपरांत जाड़े की ऋतु में  25 से 30 दिन के अंतर से केले के खेत में सिंचाई करते रहना चाहिए। इस ऋतु में सिंचाई से केले में पाले द्वारा हानि का भय नहीं रहता है ग्रीष्म ऋतु में अपेक्षाकृत जल्दी-जल्दी सिंचाई की आवश्यकता होती है।  आवश्यकता अनुसार 20 से 15 दिन के अंतर से केले की फसल की सिंचाई की जाती रहनी चाहिए वर्ष में यदि फसल में अधिक विलंब अर्थ देरी हो जाए तो फसल में सिंचाई कर देनी चाहिए असल में जिस खेत में किया गया हूं उसमें भूमि को कभी सूखने देना। 

केले के पौधे में फूल और फल लगना 

दक्षिण तथा पश्चिम भारत में केले की अगेती किस्में रोपाई के लगभग 7 महीने बाद फूल लगने लगता है। अकेला फूलने के अगले 7 महीने के अंदर फलियां जो है पक कर तैयार हो जाती हैं इस प्रकार भुवन किशन की पहली फसल के लोगों की रोपाई के लगभग 14 महीने के बाद उपलब्ध हो जाती है। और दूसरी फसल 21 से 24 महीने के बीच में तैयार हो जाती है जिस पेड़ पर एक बार फल लग जाता है उस पेड़ पर दोबारा फल नहीं लगता अतः फल तोड़ने के बाद उस पेड़ को भूमि सतह से काट देना चाहिए तन्हा काट देने से बगल की पंक्तियां अर्थात पौधे जल्दी विकसित होते हैं किंतु एक तने को एक बार में नहीं काटना चाहिए। 

 क्योंकि ऐसा करने से बगल वाले पौधे हानिकारक प्रभाव पड़ेगा अतः फल की भारी काटने के बाद लगभग 20 दिन के बाद ही स्तनों को 2 बार में काटना चाहिए केले का फूल लाल रंग का होता है इस फूल में नर और मादा दोनों ही भाग पाए जाते हैं हमारे प्रदेश में हर साल का केला बहुत पसंद किया जाता है यह केला बस राई किसमें से ही है इसके लिए कि पौधे को लगाने के लगभग 10 से 12 महीने बाद उसमें फूल निकलता है और उसके लगभग 4 महीने बाद फल काटने के लिए योग्य हो जाता है। 

फसल की कटाई 

केला  पेड़ पर गुच्छों  के रूप में निकलते हैं केले के गुच्छे को ही फसल की कटाई केले के पेड़ पर गुरु के रूप में निकलते हैं केले के गुच्छे को ही गैर कहते हैं गैर को इस प्रकार काटा जाए जाता है कि घर के लगभग 30 सेमी डंठल भी कट जाए 

उपज 

केले की एक पेड़ से केवल एक ही घारी  मिलती है किस प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 3333 घारी निकलती हैं एक घारी में 50 से लेकर सौ केले  तक होती हैं इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 250 कुंटल के लाभ प्राप्त होता है,  घर में 50 से लेकर सौ तालियां तक होती हैं इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 250 कुंटल के लाभ प्राप्त होता है।