कद्दू, सीताफल या काशीफल की खेती कैसे करें-cultivate pumpkin,

कद्दू, सीताफल या काशीफल की खेती कैसे करें-How to cultivate pumpkin, betel leaf

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कद्दू की खेती, Kaddu ki kheti(pumpkin)


                                          

                             कद्दू या सीताफल या काशीफल
                                    ( Pumpkin)
               वानस्पतिक नाम  - Cucurbita moschata
                                     कुल - Cucurbitaceae     


संछिप्त परिचय -कद्दू का मूल स्थान अमेरिका है इसकी खेती का ढंग बिल्कुल लौकी के समान है अंतर केवल इतना है कि जहां लौकी की वर्षा की फसल को छप्परों इत्यादि पर चढ़ाया जाता है, कद्दू की बेल भूमि पर ही रेंगने दी जाती है लौकी और कद्दू की खेती पास-पास नहीं करनी चाहिए ऐसे लोगों का विश्वास है इस बात में केवल इतना ही पता है कि लौकी और कद्दू पर एक ही प्रकार के कीड़े मकोड़े लगते हैं, और एक फसल पर लगा कीड़ा दूसरी फसल को भी हानि पहुंचा सकता है अतः इन दोनों फसल को अलग अलग होगा ना ही सही होता है। 

भूमि 

कद्दू के लिए हल्की दोमट अथवा दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है भूमि से पानी निकास का समुचित प्रबंध होना चाहिए।भूमि कुछ-कुछ अम्लीय होने पर कद्दू की अच्छी उपज होती है। 

भूमि की तैयारी

कद्दू की अच्छी फसल लेने के लिए भूमि की एक बार किसी मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करनी चाहिए इसके बाद चार से पांच जुदाईयां देशी हल से करनी चाहिए प्रत्येक जुताई के बाद पटेला घुमाकर मिट्टी को समतल कर देना चाहिए। 

खाद तथा उर्वरक

काशीफल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उसमें 300 से 400 कुंटल गोबर या कंपोस्ट खाद तथा 40 से 50 किग्रा नाइट्रोजन 40 से 50 किग्रा फास्फोरस 25 से 40 किग्रा पास कर देना चाहिए। गोबर की खाद से 1 माह पहले खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला दे नाइट्रोजन की मात्रा फास्फोरस और पोटाश की मात्रा मिट्टी में मिला देंगे 45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में जड़ों के पास देना चाहिए। 

बीज बोने का समय 

(अ)मैदानी मैदानी क्षेत्रों में

 1. ग्रीष्मकाल (जायद) 
नवंबर-मार्च। शीघ्र फसल के लिए इसे नवंबर में आलू की मेड़ों पर भी बोल देते हैं नदियां के कगार पर दिसंबर में बुवाई करते हैं इस फसल की पॉलिसी सुरक्षा करते हैं उन स्थानों में जायद की फसल फरवरी-मार्च में होते हैं। 

2.बरसात की फसल(खरीफ)-जून-जुलाई
(ब)पर्वतीय क्षेत्रों में-मार्च-अप्रैल 

बीज की मात्रा

कद्दू की जायद फसल लेने के लिए 6 से 7बीज प्रति हेक्टेयर आवश्यक होता है जुलाई में बोने जाने वाली फसल के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है। 

बीज बोने का ढंग 

लौकी  की भांति काशीफल को भी गड्ढों (थालों) में और नालियों में बोते हैं काशीफल को 2.5 - 3 मीटर x 75 - 100 सेमी (पंक्ति xपौधे) की दूरी पर होते हैं। 
ग्रीष्म फसल -   2. 5 x.75 मि० 
वर्षा फसल -      3 x1.0  

उपरोक्त दूरी पर ताला बनाकर एक स्थान पर 3 - 4बीज 2.5 - 3 सेमी गहराई पर बोना चाहिए। 
बाद में एक स्वस्थ पौधा ही बढ़ने के लिए छोड़ते हैं नालियों में बोने पर नालियां निर्धारित दूरी पर 50 सेंटीमीटर चौड़ी 25 से 30 सेंटी मीटर गहरी बनाई जाती है जिसमें खाद डालकर 75 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज को बो दिया जाता है। 

सिंचाई 

जायद फसल में प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है पानी पहले नालियों में दिया जाता है और खेत की बेल फैल जाने पर बेल भरने की सारी जगह में पानी फैलाया  जाता है। खरीफ की फसल में सिंचाई वर्षा ना होने पर आवश्यक होती है सामान्य वर्षा होने पर प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती वर्षा का फालतू पानी खेत से बाहर निकालते रहना चाहिए। 

निकाई- गुड़ाई 

जायद की फसल में दो से तीन बार निराई करने की आवश्यकता होती है। जब तक बेल फैल कर भूमि में भली-भांति धक नहीं लेती निकाई गुड़ाई की जाती रहती है। खरीफ ऋतु में बोई जाने वाली फसल में खरपतवार अधिक जोर पकड़ते हैं।  अतः उन नियंत्रण रखने के लिए तीन से चार बार निकाय -गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है कद्दू की लताएं जमीन पर ही फैलाई जाती हैं अतः फल  भूमि पर ही लगते हैं। 

फसल की उपज 

काशीफल की औसत उपज 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। ग्रीष्म कालीन फसल की उपज 400 क्विंटल तक हो जाती है।  क्योंकि ग्रीष्मकालीन फल 20 से 25 किलो तक का हो जाता है लोगों के साथ काशीफल के 20 नवंबर में बो दिए जाते हैं। वर्षाकालीन फसल में कम पर मिलती है क्योंकि बेल को ऊपर नहीं चढ़ाया जा सकता।

कद्दू के  किट तथा रोग 

कद्दू का लाल किट 

यह किट लाल चमकदार और लंबे आकार का होता है या फलों में छेद कर देता है इसके बच्चे फसल की जड़ों में छेद करके खाते हैं।  

 इनकी रोकथाम के लिए सेविन धूल का 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें साइपरर्मेथ्रिन का 0.15% का छिड़काव बहुत ही कारगर सिद्ध हुआ है। 

कद्दू का मक्खी 

इस किट  की मादा कद्दू के फल के छिलके के अंदर अंडे देती हैं, इससे छोटे-छोटे कीट पैदा होकर अंदर ही अंदर फलों को खाते हैं वह सड़ा  देते हैं इनकी रोकथाम के लिए सेविन धूल का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

पाउडर की तरह फफूंदी

इस रोग के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह तथा तनाव पर सफेद पाउडर जैसा पदार्थ जम जाता है जिसके फलस्वरूप समय से पहले ही पत्तियां गिर जाती हैं। 
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर 0.0 6% कैराथेन ( 60 ग्राम दवा100 लीटर पानी )के घोल का छिड़काव करें। सुटोक्स 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर  से  घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से अत्यधिक लाभ मिलता है। 

 कद्दू का बीज उत्पादन कैसे करे 

लौकी, काशीफल,तोरई, करेला, खरबूजा का बीज उत्पादन- कद्दू वर्ग की फसलों का बीज पैदा करने के उद्देश्य से हम कुछ स्वस्थ व चुने हुए रोगमुक्त फलों को बेल पर पकने के लिए छोड़ देते हैं जब फल पूर्ण रूप से पक कर तैयार हो जाए तो फलों को तोड़कर कुछ दिनों के लिए रख दिया जाता है उसके बादलों को चीर कर बीज निकाल लिए जाते हैं बीज को पानी से धोकर दूध में अच्छी तरह सुखाकर शीशियों में बंद कर रख दिया जाता है।