खरबूजा की उन्नतशील खेती कैसे करें How to cultivate melon

खरबूजा की उन्नतशील खेती कैसे करें How to cultivate melon




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                                           खरबूजा
                                         (MUSK melon)
                          वैज्ञानिक नाम- Cucumis melo.ver.Reticulatus
                                       
                                      कुल - Cucubitaceae 


खरबूजा एक स्वादिष्ट फल है, जिसका प्रयोग पराया फल के रूप में ही खाने के लिए किया जाता है,असल में या निर्धनों का फल है। लेकिन अमीर और गरीब सभी लोग इसे बड़े प्रेम से खाते हैं। अरे फल की तरकारी भी बनाकर खाई जाती है खरबूजा प्रकृति में गर्म और तरह स्फूर्तिदायक व तरावट देता है। 

 कब्ज मूर्त और पसीने की रुकावट में लाभदायक है दोनों समय के भोजन के मध्य का समय तरबूज खाने के लिए सर्वोत्तम रहता है।  खरबूजा पकने के समय इसको जितना भी अधिक गर्मी और लू मिलती है उतना ही इस में मिठास आती है खरबूजे के बीज निकल जाने पर जो गिरी प्राप्त होती है। वह अमीरों के रूप में प्रयोग आती है इसके बीज अत्यंत पौष्टिक कहे जाते हैं बीच में 40 से 45% तेल होता है। 

 जलवायु  

खरबूजे की अच्छी खेती के लिए उचित तापमान और सुखे  जलवायु की आवश्यकता होती है विशेषकर फसल के पकने की अवस्था में अधिक तापमान खुली धुप तथा गर्म हवा  और सुस्क हवा मिलने पर फलों की मिठास में वृद्धि होती है वातावरण में अधिक नमी होने पर फसल में रोग लगने का भय रहता है और फलों का विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता। 

भूमि और उसकी तैयारी

खरबूजा कई तरह की मिट्टी में उगाया जाता है लेकिन बलुई दोमट और कचहरी दोमट मिट्टी के उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है भारी मटियार मैं इसको नहीं गाना चाहिए इसकी खेती के लिए भूमि का अनुकूलतम PH मान 6 से 6. 7  के बीच है। 

 नदी तट एवं राजस्थान के रेतीले इलाकों में खरबूजे की खेती विशेष रूप से की जाती है खेत तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाला हल गहरी जुताई करके पांच से छह बार देशी हल से जुताई करनी चाहिए जिससे मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाए यदि खेत में नमी की कमी हो और अंतिम जुताई से पहले हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। 

खाद तथा उर्वरक

 खाद की आवश्यकता मिट्टी की किस्म और उर्वरा  शक्ति पर निर्भर करती है साधारण रेतीली भूमि में खाद अधिक मात्रा डालनी चाहिए मध्यम उर्वरता वाली बलुई दोमट में 250 क्विंटल गोबर की खाद 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन 25 से 30 किलोग्राम फास्फोरस और 20 से 30  पोटाश किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है।

फास्फोरस और पोटाश की  पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा  खेत की तैयारी के साथ ही डाली जाती है तथा नाइट्रोजन की बची हुई शेष मात्रा को फुल  आने के समय डालना चाहिए गोबर की अच्छी तरह चढ़ी हुई के लगभग 1 महीने पहले खेत में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।


बुवाई का समय 

बुवाई की विधि बीज के बोने के लिए 1.5 मीटर चौड़ी और सुविधाजनक लंबाई वाली क्यारियां बनाई जाती हैं जो क्यारियों के बीच 7 सेंटीमीटर चौड़ी नाली रखी जाती है क्यारियों में दोनों किनारों पर 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज बोए जाते हैं प्रत्येक थैले में 4 से 6 बीच लगभग 1.5 सेंटी मीटर की गहराई पर होना चाहिए बीज की दर 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

सिंचाई और निराई 

बीज बोकर पहली सिंचाई करने के पश्चात खरबूजे बढ़ने तक लगभग 1 सप्ताह के अंदर पर सिंचाई करते रहना चाहिए जब फलों का आकार आधे से कुछ अधिक बड़ा हो जाए तो 12  से 15दिन के अंतर पर सिंचाई करना पर्याप्त होता है। नालियों में यादों में अधिक पानी न भर जाए अन्यथा पौधों पर रोगों और कीटों का आक्रमण जल्दी होता है ,नदी तट पर आए के बाद दो बार पानी देना पर्याप्त होता है उसके बाद पौधों की जड़ें इतनी बढ़ जाती हैं रेत के नीचे कि पानी सतह पर पहुंच जाती हैं जिससे सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

कीट एवं रोकथाम 

खीरा वर्ग की सभी सब्जियों में लगने वाले कीट खरबूजे में भी बहुत हानि पहुंचाते हैं सबसे अधिक हानि रेड पंपकिन बीटल ,फल मक्खी से होता है।

1. रेड पम्पकिन बीटल 

पहचान -यह लाल रंग का उड़ने वाला कीट है जो पौधों के उठते ही पत्तियों को खाना आरंभ कर देता है

रोकथाम - पौधों पर मेलाथियान 5% धूल का 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करे।  या  0 . 15%सैपरमेथ्रीन के घोल में तीन केवल 150 मी 0 लीटर 100  लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए।

2. ईपीलेेकना बीटल 

पहचान -इसके ऊपर काले रंग के गोल धब्बे होते हैं इसके बच्चे और वयस्क दोनों ही पत्तियों को खाते हैं काटने वाली सुंडी रात में निकल कर छोटे पौधों को जड़ से काट देती है इसके रोकथाम के लिए उपयुक्त विधि बताए गए कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है काटने वाली संडे को मारने के लिए पौधों के साथ-साथ जमीन पर कीटनाशक दवाओं को डालना चाहिए

3. फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई )


पहचान -यह  खरबूजा की अत्यंत हानिकारक कीट है यह मक्खी कुछ पीले रंग की होती हैं तथा फलों पर अंडे देते हैं कभी-कभी 70 से 80% तक फल इससे ग्रसित हो जाते हैं निम्न विधियों से इनके आक्रमण को कम किया जा सकता है।


रोकथाम -ग्रसित फलो को एकत्रित करके जमीन में गहरा गाड़ दें।  खेत को तैयार करते समय एल्ड्रिन 5% धूल को जमीन की ऊपरी सतह पर बुरकाव करके  मिट्टी में मिला देना चाहिए।

बीमारी और रोकथाम 

1. चूर्णी फफूँदी 

यह फफूंद पत्तियों और तनो पर आक्रमण करती है पुरानी  पत्तियों के निचले भाग  में गोल सफ़ेद धब्बे प्रकट होते है ये धब्बे धीरे - धीरे बड़े होने लगते हैं। और इनकी संख्या में वृद्धि होती रहती है जिससे यह पत्तियों  के ऊपरी सतह पर छा जाते हैं।  

 इसका नियंत्रण करने के लिए लक्षण प्रकट होते ही रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ दे। और पौधों पर घुलनशील गंधक जैसे सल्फेक्स  अथवा इलोसाल के 0.3 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें 3 सप्ताह के अंदर पर तीन छिड़काव करें।

2. रोमिल  फफूँदी 

यह अधिक वर्षा और नमी वाले क्षेत्र में होती है पत्तियों के ऊपर सतह पर पीले रंग के धब्बे प्रकट होते हैं जो बाद में भूरे रंग के होने लगते हैं नवी अधिक होने पर पतियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के जीवाणु दिखाई देते हैं साधारणता प्रारंभ में धब्बे पत्तियों के मध्य में होते हैं। 

 जो धीरे-धीरे बाहर की तरफ की सतह पर फैलते हैं इसके नियंत्रण के लिए Rog ऋषि पौधों को निकाल देना चाहिए और पौधों पर इंडोफिल एम 45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। 

उपज 

उन्नत विधियों द्वारा करने पर  खरबूजे की उपज 150 से 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर आसानी से प्राप्त होती है। 


तोरई की उन्नतशील खेती कैसे करे - How to cultivate high quality of tomai

तोरई की उन्नतशील खेती कैसे करे How to cultivate high quality of tomai



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                                                तोरई
                                           (Sponge Gound)
                      वैज्ञानिक नाम - Luffa Cylindrica Roem
                                   
                                       कुल -Cucurbitaceae

तोरई की खेती 

भूमि 

तोरई की फसल के लिए हल्की दोमट अथवा दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है लेकिन तोरई  की फसल भी उन सभी मिट्टी में उत्पन्न की जा सकती है जहां लौकी उगाना संभव है। 

भूमि की तैयारी  

लौकी और करेले की फसल के समान तोरई की फसल के लिए भी भूमि एक बार किसी मिट्टी पलट हल से जोड़कर तीन से चार बार देशी हल से जूते नहीं चाहिए।  और पटेला चलाकर भूमि को समतल कर देना चाहिए उन की तैयारी के समय उसमें पर्याप्त मात्रा में कम से कम 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। 

खाद तथा उर्वरक 

खेत की तैयारी करते समय लगभग 250 से 300 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद बुवाई के एक माह पहले मिट्टी में मिला देनी चाहिए खाद की आवश्यकता निम्न प्रकार होती है गोबर की खाद 250 से 300 किलो मीटर तथा 30 से 40 किग्रा नाइट्रोजन 25 से 30 किग्रा फास्फोरस 30 से 40 के ग्रह प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की एक बटे तीन फास्फोरस की मात्रा में बीज बुवाई के पहले मिट्टी में मिल आते हैं। 

 नाइट्रोजन का एक बटे तीन भाग पौधों में चार से पांच पतियों ने पत्थर एक बटे तीन भाग फूल आने पर पौधों के चारों ओर टॉप ड्रेसिंग द्वारा देते हैं। 

बुवाई का समय 

तोरई की फसल मैदानी भागों में वर्ष में दो बार ली जाती है WhatsApp ग्रीष्म ऋतु में वर्षा वाली फसल के लिए बीजों की बुवाई जून-जुलाई में करते हैं तथा गर्मी वाली फसल नवंबर से फरवरी तक बोई जाती है अगेती फसल जिसमें 20 दिसंबर में ही बोए जाते हैं जमाव ना होने पर ठंड से बचाना चाहिए   पहाड़ों पर तोरई  20 अप्रैल से जून तक बोए जाते हैं। 

 बीज की मात्रा 

4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 

खरीब की फसल में कम जायद में अधिक बार प्रयोग करते हैं। 

 बुवाई का ढंग 


तुरई की  बुवाई लौकी की भांति की जाती है तुरई की बुआई गड्ढों में नालियों में क्यारियों में की जाती है। 

फसल अंतरण                                          ग्रीष्म फसल                                                 वर्षा ऋतू की फसल 

                                                                 2 × 0. 5                                                                 3  × 0. 75 

सिचाई व निकाई -गुड़ाई 

पानी की आवश्यकता मौसम और भूमि की किस्म पर निर्भर करती है। बरसात में प्राया सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती वर्षा पर्याप्त ना होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु की फसल में प्रारंभिक दिनों में लगभग 10 दिनों के अंतर पर तथा  बाद में तापक्रम बढ़ने पर 5 से 6 दिनों के अंतर पर सिंचाई की आवश्यकता हो जाती है खेत को खरपतवार रहित रखने के लिए समय-समय पर निराई करते रहना चाहिए।

सहारा देना

 शाखा धार सूखे पेड़ों की डालियां बांस की पत्तियों का बहाना बनाकर बैलों को जल चढ़ाने से बरसात की फसल में काफी लाभ होता है।  इससे फलों को गीली मिट्टी के संपर्क में आकर चढ़ने से बचा लिया जाता है और पढ़ाई में भी सुविधा होती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल पर आया जमीन पर फैलने देते हैं तोरई में नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर आते हैं यह दिन और फूल के पुंकेसर वालों की भर्ती गांव के ऊपर रगड़ जाए तो परागण हो सकता है।

बीमारियाँ तथा रोकथाम 

1. चूर्णी फफूदी 

पहचान -इस बीमारी का आक्रमण पत्तियों एवं तनो  पर होता है पहले पुरानी पत्तियों पर सफेद रंग के गोल धब्बे उत्पन्न होते हैं जो धीरे-धीरे आकार और संख्या में बढ़कर पूरी पत्तियों पर छा जाते हैं पत्तियों  की सतह पर सफेद चूर्ण सा जमा  हुआ दिखाई देता है रोग का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों का हरा रंग समाप्त होने लगता है और यह पीली पड़ कर अंत में भूरी  हो जाती हैं और इन पर झुर्रियों से पड़ जाती है

रोकथाम -लक्षण प्रकट होते ही ग्रसित भाग को निकाल दें। 0. 06 % केराथेन  के घोल का 3 सप्ताह के अंतर पर तीन छिड़काव करें। 

2.रोमिल फफूँदी 

पहचान -पीले से लेकर लाल भूरे रंग के धब्बे पत्तियों की ऊपरी सतह पर तथा बैंगनी रंग के धब्बे पत्ती की निचली सतह पर प्रकट होना इसका मुख्य लक्षण है। रोग ग्रसित पौधों पर लगे फल को ठीक से पकने नहीं और फल में उनका स्वभाव का रंग भी उत्पन्न नहीं हो पाता है।

रोकथाम -इंडोफिल एम 45 के 0. 25 प्रतिशत 250 ग्राम 100 लीटर पानी में घोल का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर 3 बार करें।

3. मोजेक

यह रोग माहू द्वारा फैलता है अतः इन्हें मारने के लिए साईपरर्मेथ्रिन 0.15 प्रतिशत (150 मिली 100 लीटर पानी) दवा का प्रयोग करते हैं रोगी पौधों को निकाल कर जला देना चाहिए।

किट तथा उनकी रोकथाम 

1 . लौकी का लाल भृंग (रेड पंपकिन बीटल )

 यह लाल रंग का उड़ने वाला कीट है पौधों के उठते ही इनकी पत्तियों को खाना आरंभ कर देते हैं।

रोकथाम -पौधों पर मैलाथियान 5% धूल 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का बुरकाव   या 50% घुलनशील धूल के 0.2 प्रतिशतघोल 200 ग्राम दवा 100  लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए साईपरर्मेथ्रिन 0.15 प्रतिशत के घोल का छिड़काव बहुत ही कारगर सिद्ध होता है।


2 . तने काटने वाली सूंडी (कटवर्म )

पहचान - यह सुंडी रात में निकलकर छोटे पौधों को भूमि की सतह से काट देते हैं दिन में या घास फूस में छिपी रहती हैं।  

रोकथाम -इनकी रोकथाम के लिए लिन्डोन  1.3 प्रतिशत या  हेप्टाक्लोर (20 से 25 किलोग्राम )प्रति हेक्टेयर को बीज से बुवाई से पहले खेत में मिला देते हैं

3. माहू 

रोकथाम -इनकी रोकथाम काफी हद तक उपरोक्त कीटनाशक दवाओं से ही हो जाएगी किंतु आक्रमण अधिक है।  तो साईपरर्मेथ्रिन 0.15% 150 मिलीलीटर 100 लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए।  इस दवा के छिड़कने के बाद 7 दिन तक फल नहीं तोड़ना चाहिए। 

4. फल की मक्खी (फ्रूट फ्लाई )

पहचान -वयस्क मक्खी कुछ पिले लाल रंग की होती है जो फलो में अण्डे देती है। कभी -कभी 50 %तक फल इससे ग्रसित हो जाते है। 

रोकथाम -रोग ग्रसित फलो को इकट्ठा करके जमीन में गहरा गाड़ देना चाहिए। 
 बेल पर फूल आते ही सेविंन  0. 2% 200 ग्राम दवा 100 लीटर पानी में अथवा साईपर्मेथ्रिन में 0 . 15% से 150 मिलीलीटर दवा 100 लीटर पानी में घोल का छिड़काव भी किया जा सकता है। 

उपज 

100-125  कुंतल प्रति हेक्टेयर