लीची की उन्नतशील खेती कैसे करें How to cultivate litchi's advanced plant
लीची की खेती
उपयोगिता
लीची एक अत्यंत स्वादिष्ट फल है जिसे बच्चे विशेष रूप से पसंद करते हैं या फल हल्के लाल रंग का होता है और छिलका उतार देने पर सफेद गुदा निकलता है जिसे खाने के लिए प्रयोग किया जाता है गुर्दे के अंदर बीज का निकलता है।
लीची का फल प्राकृत में ठंडा वाटर होता है इसमें आवश्यकताएं 15.3 प्रतिशत शर्करा शुगर 11015 प्रतिशत प्रोटीन और 4.5% खनिज लवण होते हैं इसमें विटामिन सी भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं लीची का फल सेवन करने से हृदय तथा मस्तिष्क को बल मिलता है।
यह प्यास को भी शांत करता है अतः एक ही साथ इसे अधिक नहीं खाना चाहिए लीची के फल ताजे खा जाते हैं, फल मई से जुलाई तक मिलते हैं। लेकिन स्थित भंडारों में रखे फल महीनों में खाने के लिए उपलब्ध हो सकते हैं।
लीची का उत्पत्ति स्थान
लीची गर्मियों का फल है लीची उगाने वाले देशों में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है चीन देश को इसकी जन्मभूमि मानी जाती है।
हमारे देश में लीची के दो प्रमुख क्षेत्र हैं -
1. उत्तर सूखा फल प्रदेश -लीची का उत्पादन केवल पंजाब में गुरदासपुर जिले तथा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और उत्तराखंड के देहरादून जिले तक ही सीमित है देहरादून और सहारनपुर में लीची के सुंदर बगीचे हैं जो ग्रीष्म ऋतु में पेडों पर लीची लदे होते हैं।
2. पूर्वी आर्द्र फल प्रदेश - इस क्षेत्र मुक्ता बिहार के चंपारण मुजफ्फरनगर दरभंगा और भागलपुर जिले में तथा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, आजमगढ़, फैजाबाद, इलाहाबाद और वाराणसी जिले में लिखी अधिक होती है।
लीची की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए
लीची के लिए मामूली नम और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है पहले और दूसरे लीची को हानि पहुंचती है लीची को ऐसे क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है जहां गर्मियों में अधिक गर्मी ना पढ़ती हो और जाड़ों में अधिक सर्दी ना हो इसे 1000 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से उगाया जा सकता है उत्तरी शुष्क प्रदेश के लीची उगाने वाले तराई क्षेत्रों की ऊंचाई 450 मीटर से लेकर 625 मीटर तक है।जहां मैदानों की अपेक्षा स्पष्ट रूप से शीत ऋतु अधिक भीषण होती है और बोली थी कि फलाने के समय में इस सारे क्षेत्रफल में तापमान कुछ अधिक रहता है ग्रीष्म ऋतु में वर्षा के आगमन से पहले तक यहां तूफानी आंधियां चलती हैं वर्षा वार्षिक 90 सेंटीमीटर से लेकर 125 सेंटीमीटर तक होती हैं सहारनपुर और देहरादून जिलों के मौसम को पर्वतों की निचली भूल पर गर्म समिति शीतोष्ण जलवायु का कुछ लाभ प्राप्त होता है।
अतः यहां दोनों प्रदेशों में उगने वाले फल सरलतापूर्वक उगाए जा सकते हैं। आजकल प्रदेश के बिहार और यूपी उत्तर प्रदेश क्षेत्र में 75 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है। और जनवरी के महीने में ताप 21 डिग्री सेल्सियस रहता है मौसम फलों के मौसम में तापमान भी ऊंचा रहता है अतः स्पष्ट है कि लीची का फल उत्पादन के लिए गर्म जलवायु आवश्यक होता है फलों के पत्ते समय सूची हवा चलने से पलट जाते हैं देश में सबसे अधिक क्षेत्रफल बिहार में है।
लीची की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करे
लीची के लिए पर्याप्त गहराई की ऐसी भूमि की आवश्यकता होती है जिसमें पानी का निकास का समुचित प्रबंध हो लीची के लिए मृतिका दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है। दोमट भूमि में भी लीची की अच्छी उपज होती है।
दोमट भूमि में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होने पर लीची की उत्तम उपज होती है। 6 और 7 p. h बजे के बीच अम्लीय भूमि लीची की उपज उगाने की क्षमता रखती है अति उत्तम लीची की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा काफी होनी चाहिए।
खाद और उर्वरक
पेड़ की उम्र (वर्ष में ) गोबर की खाद नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश
(किग्रा प्रति पेड़ ) (ग्रा० प्रति पेड़) (ग्रा० प्रति पेड़) (ग्रा० प्रति पेड़)
1 15 60 30 30
1 15 60 30 30
2 20 120 60 60
3 25 180 90 90
4 30 240 120 120
5 35 300 150 150
6 40 360 180 180
7 45 420 210 210
8 50 480 240 240
9 55 540 270 270
10 60 600 300 300
3 25 180 90 90
4 30 240 120 120
5 35 300 150 150
6 40 360 180 180
7 45 420 210 210
8 50 480 240 240
9 55 540 270 270
10 60 600 300 300
लीची का प्रवर्धन
लीची के पौधो को निम्नलिखित विधियों से तैयार किये जा सकते है1 . बीज बोकर
2. दाब कलम लगाकर
3. भेंट कलम लगाकर
4. मुकुलन द्वारा
इन सब विधियों में गुटी अथवा दाब कलम लगाकर पौधे तैयार करने में अधिक सहायता मिलती है।
एक वर्षा हो जाने पर जुलाई के प्रारंभ में इन गड्ढों में प्रत्येक 15 किलोग्राम गोबर की खाद 2 किलोग्राम चुना 250 ग्राम पोटाश 250 ग्राम एल्ड्रिन चूर्ण 10 किलोग्राम लीची के बाग की मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को भर देना चाहिए। वर्षा ऋतु में मिट्टी अच्छी प्रकार से गड्ढों में बैठ जाएंगे अब अगस्त में इन गड्ढों के बीचो-बीच पौधा लगाकर उनके चारों तरफ हाला बना देना चाहिए।
जिससे कि पानी तनु के संपर्क में ना आए पौधों को शीत ऋतु में पाले और ग्रीष्म ऋतु में लू से बचाना चाहिए इस उपाय से पौधों को स्विच देना चाहिए और पौधों के ऊपर और चटाई की पट्टियां लगा देनी चाहिए पूरब की ओर मुंह खुला छोड़ा जा सकता है।
3. भेंट कलम लगाकर
4. मुकुलन द्वारा
इन सब विधियों में गुटी अथवा दाब कलम लगाकर पौधे तैयार करने में अधिक सहायता मिलती है।
लीचीपौधे रोपने का समय और ढंग
लीची के पौधे वर्षा ऋतु में खेत में बोए जाते हैं, लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा हो तो फरवरी-मार्च में इन्हें खेत में बोया जा सकता है। लीची के पौधों को बोने के लिए अप्रैल-मई में खेत में 10 गुणा 10 मीटर की दूरी पर 1 मीटर व्यास के 1 मीटर गहरे गड्ढे गोद लेने चाहिए।और जून तक इन्हें खुला रखना चाहिए जिससे कि मिट्टी और गड्ढे धूप से अच्छी तरह तपे जाये।एक वर्षा हो जाने पर जुलाई के प्रारंभ में इन गड्ढों में प्रत्येक 15 किलोग्राम गोबर की खाद 2 किलोग्राम चुना 250 ग्राम पोटाश 250 ग्राम एल्ड्रिन चूर्ण 10 किलोग्राम लीची के बाग की मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को भर देना चाहिए। वर्षा ऋतु में मिट्टी अच्छी प्रकार से गड्ढों में बैठ जाएंगे अब अगस्त में इन गड्ढों के बीचो-बीच पौधा लगाकर उनके चारों तरफ हाला बना देना चाहिए।
जिससे कि पानी तनु के संपर्क में ना आए पौधों को शीत ऋतु में पाले और ग्रीष्म ऋतु में लू से बचाना चाहिए इस उपाय से पौधों को स्विच देना चाहिए और पौधों के ऊपर और चटाई की पट्टियां लगा देनी चाहिए पूरब की ओर मुंह खुला छोड़ा जा सकता है।
लीची की सिचाई
छोटे पौधों को जाड़ों में पाले से बचाने के लिए सिंचाई कर देने की बात हम ऊपर कह चुके हैं सिंचाई कर देने से पौधों पर लोग का असर नहीं होता पौधों में फूल आने से पहले और उसके बाद फल लगने तक दो से तीन सिंचाई करनी चाहिए दिसंबर से मई तक लीची में सिंचाई करना बहुत आवश्यक है क्योंकि इसी समय लीची में फूल और फल लगते हैं और बढ़ते भी हैं।निराई और गुड़ाई
लीची के बाग की निराई गुड़ाई प्रत्येक सिंचाई के बाद की जानी चाहिए,खेत में घास बात कभी नहीं रहने देना चाहिए।काट -छाँट
पौधों को सुडौल बनाने के लिए प्रारंभ में कटाई छटाई की आवश्यकता होती है लेकिन पौधों के बड़ा हो जाने पर उन्हें कटाई छटाई करना संभव नहीं होता। फलों को गुच्छे में छोटी बड़ी टहनियां के साथ तोड़ लिया जाता है यही छटाई लीची के लिए पर्याप्त होती है।लीची की उपज
लीची के पौधों में प्रति पेड़ औसतन 1 से 2 क्विंटल फल लगते हैं अतः 10 गुणा 10 मीटर की दूरी पर लगाए गए लीची के बाग में प्रति हेक्टेयर तो पेड़ लगते हैं इनसे लगभग 100 से 200 क्विंटल फल प्राप्त होते हैं।लीची के फलों को सुरक्षित कैसे रखें
शीत भंडारों में लीची के फलों को लगभग 3 से 4 सप्ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है। शीत भंडार का ताप 4.4 डिग्री सेल्सियस से लेकर 6. 1० सेंटीग्रेट होना चाहिए।किट नियंत्रण
1. माइट -यह सफेद छोटा रंग का कीट होता है या पत्तियों के निचले भाग से रस चूसता है ऐसी पत्तियां सिकुड़कर गिर जाती हैं इनका प्रकोप मई से जुलाई तक अधिक होता है इसकी रोकथाम के लिए फेनकिल
नामक दवा के 0.15 %प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
नामक दवा के 0.15 %प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
2. मिलीबाग- यह किट यूं तो मुख्य रूप से आम को ही हानि पहुंचाता है लेकिन जहां आम और लीची के बाग साथ-साथ होते हैं वहां लीची के फूल तथा नए कलियों का रस चूसता सकता है इसकी रोकथाम के लिए ओस्टीको को पेस्ट की पट्टी बांध देना चाहिए।
3. छिलका खाने वाली सूंडी -इस रोग का प्रकोप होने पर इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोफॉर्म में डुबोकर छेदो में भर दे सुंडी की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 एसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
रोग नियंत्रण
4. चूर्णी फफूँदी -इस रोग का प्रकोप होने पर फूलों और नई पत्तियों पर फफूँदी सफेद धूल जैसी दिखाई देती है इसके रोकथाम के लिए केराथेन 0.06% घोल छिड़काव करना चाहिए।लीची के फलों को फटने से कैसे बचाएं
फलों को फटने से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए -1. फलों पर मई के महीने में दो से तीन बार पानी का छिड़काव करना चाहिए।
2. ऐसी किसमें लगाए जिनके फल कम पड़ते हैं।
3. नेफ़थलीन एसिटिक एसिड का 10 से 20 पी.पी.एम का घोल फलों पर छिड़काव करने से फल कम फटते हैं।