लहसुन की उन्नत शील खेती कैसे करे -How to cultivate Garlic's advanced cultivation -
लहसुन
(Garlic)
वानस्पतिक नाम-Allium satviam
कुल -Liliaceae) or Alliceae
उपयोगिता-लहसुन मसाले की एक महत्पूर्ण फसल है देश के लगभग सभी भागो में इसकी खेती की जाती है लेकिन मुख्य रूप से इसकी खेती तमिलनाडु ,आँध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, और गुजरात में होती है इसे विदेशों में खासकर अर्जेटाइना, में भेजकर विदेशी मुद्रा प्राप्त की जाती है आमतौर पैर इसका प्रयोग सब्जी ,दाल ,सुप ,अचार सॉस (चटनी ) मछली, मांस आदि को स्वादिस्ट व् सुगन्धित बनाने के लिए किया जाता है सरीर को निरोग निरोग रखने में सहायक होता है
शरीर को निरोग रखने में यह बेजोड़ बताया गया है इसमें में बहुत से औषधीय गुण होते हैं इसकी गांठ के तेल में एलाइल प्रोफाइल डाईसल्फाइड तथा एक अन्य गंध युक्त योगिक एलिसिन पाया जाता है एसिलिन की 1 मि.ग्रा मात्रा 15 ऑक्सफोर्ड इकाई पेनिसिलिन के बराबर होता है इसके तेल की मालिश करने पर गठिया के रोगी को आराम मिलता है लहसुन के सेवन वायु रोग और बदहजमी में गुणकारी है इसकी सुबह सुबह खाली पेट लहसुन की दो पुक्तियां चबा ली जाए तो पुराने से पुराना वायु रोग समाप्त हो जाता है ह्रदय रोगियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी पाया गया है और प्रसव में भी इसका प्रयोग लाभकारी रहता है
नमक के साथ मिलाकर सिर दर्द उदर वायु और मिर्गी आदि में खिलाया जाता है बेहोशी की दशा में इसे प्याज की तरह सूखने के लिए दिया जाता है लहसुन डालकर गर्म किया गया सरसों का तेल मलने से खाज-खुजली में आराम मिलता है 15 ग्राम तिल के तेल में लहसुन को गर्म करके डालने बहते हुए कान व कान के दर्द में आराम मिलता है
लहसुन का निरंतर प्रयोग करते रहने से आंतों के हानिकारक किट नस्ट होते हैं अधिक रक्तचाप के रोगियों के लिए लहसुन सेवन लाभकारी पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं
लहसुन में पौस्टिक तत्त्व की मात्रा -
100 ग्राम लहसुन में निम्न तत्त्व पाए जाते है
62. 0 ग्राम जल
29. 0 ग्राम कार्बोहाइड्रेट
9.3 ग्राम प्रोटीन
0.1 ग्राम वसा
1.0 ग्राम लवण
310 मि.ग्रा फास्फोरस
30 मि.ग्रा कैल्शियम
1.3 मि.ग्रा लोहा
जलवायु
लहसुन शरद ऋतु की फसल है यह पाले को काफी हद तक सहन कर लेती है पौधों की वनस्पति वृद्धि एवं गाठो के निर्माण के लिए मध्यम तापमान और कम प्रकाश अवधि की आवश्यकता होती हैपत्तियों की बढ़वार गांठ बनने के साथ ही रुक जाती है अतः लहसुन की अधिक उपज और पर्याप्त वनस्पतिक वृद्धि के लिए इसे जल्दी ही (सितंबर-अक्टूबर )में होना चाहिए ताकि इसे ठंडा तापमान और कम प्रकाश अधिक विकास के लिए मिल सके 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर गांठों का निर्माण बंद हो जाता है लहसुन के समुचित विकास व उपज के लिए 13 से 24 डिग्री सेल्सियस तापमान और 75% आपेक्षिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है लहसुन को समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता हैभूमि तथा उसकी तैयारी
साधारण लहसुन की खेती सभी प्रकार की उपजाऊ भूमियों में की जा सकती है लेकिन अधिक उपज लेने के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट भूमि जिससे जीवांश की भी पर्याप्त मात्रा हो सर्वोत्तम रहती है भारी मिट्टी इसकी खेती के लिए ठीक नहीं रहती क्योंकि इसमें लहसुन की गांठ है ठीक से नहीं बढ़ पाते हैं और उनका आकार भी बिगड़ जाता हैसाथ ही खुदाई के समय भी गांठों में खरोच तथा टूटने का भय रहता है भूमि क्षारीय फिर अम्लीय नहीं होनी चाहिए भूमि का पीएच मान 6से 7.5 तक होना चाहिए
भूमि की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन से चार बार देशी हल से करनी चाहिए प्रत्येक जुताई के बाद पता लगाते रहना चाहिए ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि गाँठ का समुचित विकास हो सके
बीज और बुवाई
(1) बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा- उत्तरी भारत में मैदानी भागों में लहसुन की बुवाई सितंबर अक्टूबर में की जाती है सितंबर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर के पहले सप्ताह के बीच का समय मोबाइल के लिए सबसे अच्छा पाया गया है पहाड़ी क्षेत्र में इस की बुवाई मार्च-अप्रैल में की जाती है बुवाई के लिए स्वस्थ और बड़े आकार की गांठों का चुनाव करना चाहिएएक हेक्टेयर में बुवाई के लिए छोटी गांठ वाली किस्मों का 400 से 500 किलोग्राम और बड़ी गाठो वाली किस्मों का 600 से 700 ग्राम बीज लगते हैं बोने से पहलेगाठो को अलग कर लेते हैं गाठों से पुक्तियों को अलग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पुक्तियों के ऊपर की पतली परत को कोई हानि ना पहुंचाएं स्वस्थ तथा बड़ी-बड़ी पुक्तियों की पैदावार अच्छी मिलती है
अतः बोने के काम में लाई जाने वाली पुक्तियां बड़े आकार की तथा कम से कम 1 ग्राम वजन की होनी चाहिए बोने के काम में लाई जाने वाली गाठें रोग रहित चमकीली और चिकनी होनी चाहिए
बुवाई की विधि तथा बोने की दूरी- लहसुन की बुवाई निम्नलिखित दो तरीकों से करते हैं
(1.)हाथ द्वारा- इस विधि से तैयार खेत में पहले क्यारियां बना ली जाती हैं 15 सेंटीमीटर की दूरी पर कटारे बना ली जाती है और फिर हाथ से इन कतारों में 7 से 8 सेमी की दूरी पर 4 से 5 सेमी गहराई प्रस्तुतियों को गाते चले जाते हैं बोते समय पुक्तियो का जड़ वाला भाग निचे की ओर तथा नुकीला सिरा ऊपर की ओर रखते हैं इसके बाद पुत्तियों को मिट्टी से ढक देते हैं बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है यदि विधि केवल छोटे क्षेत्र में बुवाई के लिए ही है क्योंकि इसमें मजदूरीअधिक लगता हैं
(2.) हल के पीछे कुंड में बोना- इस विधि में देसी हल की सहायता से 15 सेमी० की दुरी पर बनी कुड खोल लेते है अथवा प्लेनेट जूनियर की सहायता से 15 सेमी० की दुरी पर बनी नालिया सी बना लेते है इन कूडो या नालियों में हाथ से लगभग 7 -8 सेमि० की दुरी पर पुत्तियो को गिराते जाते है बुवाई समाप्त करने के बाद पाटा लगाकर कूडो को मिट्टी से ढक देते है अधिक भाग में बुवाई करने के लिए यह विधि उत्तम है
खाद तथा उर्वरक
लहसुन की अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद और उर्वरक दोनों की ही आवश्यकता होती है खेत की तैयारी के समय 200 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद्य कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के अनुसार करना चाहिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अनुसार लहसुन के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 100 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है फास्फोरस और पोटाश की मात्रा तथा नाइट्रोजन की शेष आधी की मात्रा को बुवाई के एकमाह बाद टॉपड्रेसिंग के रूप में कतारों में डाल कर देना चाहिएसिंचाई एवं जल निकास
लहसुन की खेती में सिंचाई का बहुत महत्व है बिना सिंचाई के इससे अधिक उपज लेना संभव नहीं है जब तक बोई गई गांठे के अंकुर ना निकले तब तक उनमे पर्याप्त मात्रा में नमी को बनाए रखना अति आवश्यक है यदि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी ना हो तो बुवाई के बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए इसके बाद सर्दियों में 10 से 15 दिन के अंतर से तथा गर्मी आने पर 5 -7 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिएलहसुन की फसल में गांठों के निर्माण के समय सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है इस समय सिंचाई में देर करने या आसावधानी बरतने से गांठे फटने लगती हैं जिससे उपज कम हो जाती है जब फसल तैयार हो जाए अर्थार्थ जब फसल की ऊपरी पत्तियां सूख कर गिरने लगे तो सिंचाई बंद कर देनी चाहिए अन्यथा गाठो की भंडारण क्षमता कम हो जाती है
अंतिम सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खुदाई के समय भूमि में थोड़ी -थोड़ी नमी रहे ताकि खुदाई में कोई दिक्कत ना हो लहसुन के खेत में कभी भी आवश्यकता से अधिक पानी नहीं भरना चाहिए फालतू पानी को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा गाठों का सफेद रंग बदरंग हो जाता है और गाठों खराब भी हो सकती हैं
खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की फसल में मुख्य रूप से बथुआ मोरेला , प्याजी ,मोथा ,मकड़ा ,दुब तथा सत्यानाशी (कटेली) खरपतवार उगते हैं जिनको खेत से निकालना आवश्यक होता है अन्यथा पौधे की बढ़वार कम होती है और गांठे छोटी रह जाते हैं लहसुन की फसल बुआई के 2 महीने तक खुरपी तथा हैंड हो की सहायता से निराई गुड़ाई का काम किया जा सकता है लेकिन 2 महीने बाद जब गांठे बढ़ने लगते हैं तो खुरपी चलाने से उनको नुकसान पहुंचने का भय रहता हैऐसी स्थिति में खरपतवारों को हाथ से खींच कर निकलना चाहिए अच्छा तो यह रहता है कि खबर खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाए इसके लिए बेसलीन नामक रसायन काफी अच्छा रहता है 1000 लीटर पानी में घोलकर लहसुन की बुवाई से पहले खेत में छिड़ककर मिट्टी में हैरो आदि से अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए जिससे खरपतवार नहीं होता
रोग नियंत्रण
लहसुन की फसल पर भी वही रोग लगते है जो प्याज की फसल पर लगते है आप निचे दिए गए इस लिंक को खोले और देखे -
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⤷लहसुन और प्याज का रोग नियंत्रण कैसे करें
किट नियंत्रण
लहसुन की फसल पर भी प्याज की तरह ही किट लगते है किट निंत्रण के लिए निचे दिए गए गए इस लिंक को ओपन करे
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⤷लहसुन और प्याज का रोग नियंत्रण कैसे करें
खुदाई
जब पौधे की पत्तिया का रंग पीला तथा भूरा रंग हो जाता है ये ऊपर से सूखने लगती है तो फसल की कूड़े कर लेनी चाहिएउपज
उन्नत तौर तरीको से खेती पर एक हेक्टेयर भूमि से लहसुन की 80 -100 कुन्तल पैदावार मिल जाती हैखेती हर किसान हेतु-"जब तक किसान खुशहाल नहीं होंगे, तब तक देश व समाज का पूर्ण विकास नहीं हो सकता है "
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