कृषि सुरक्षा और स्वास्थ्य



कृषि सबसे खतरनाक उद्योगों में से एक है। किसानों को ऎसी चोटों का खतरा होता है, जो उनके लिए घातक भी हो सकती हैं, या घातक नहीं हो सकती है। उन्हें काम से सम्बंधित फेफडों की बीमारियां, शोर से होने वाला बहरापन, त्वचा रोग और रसायनों के उपयोग और लम्बे समय तक धूप में रहने के कारण कैंसर हो सकता है।


कृषि उन गिने चुने उद्योगों में से है जिनमें परिवार को भी चोट, बीमारी या मृत्यु का खतरा बना रहता है। (क्योंकि परिवार वाले अक्सर साथ ही रहते हैं और काम में हाथ बंटाते हैं)। एक औसत वर्ष में, अमेरिका में 516 श्रमिकों की मृत्यु खेती का कार्य करने के दौरान होती है। 1992-2005)। इन मौतों में से, 101 ट्रैक्टर पलटने के कारण होती हैं। प्रति दिन लगभग 243 कृषि मजदूर कार्य-समय-चोट-क्षति को झेलते हैं और इनमें से लगभग 5% स्थायी रूप से विकलांग हो जाते हैं।


कृषि युवा श्रमिकों के लिए सबसे खतरनाक उद्योग है, अमेरिका में 1992 और 2000 के बीच कार्य से सम्बंधित होने वाली मौतों में से 42% युवा श्रमिकों की थीं। अन्य उद्योगों के विपरीत, कृषि में युवा पीडितों के आधे लोगों की उम्र 15 वर्ष से कम थी। 15-17 आयु वर्ग के युवा कृषि श्रमिकों के लिए, घातक चोट का खतरा अन्य कार्य स्थानों की तुलना में चार गुना होता है। कृषि कार्य के दौरान युवा श्रमिकों को खतरों में काम करना होता है, जैसे मशीनरी पर काम करना, सीमित स्थानों में काम करना, तीखे ढलान पर काम करना और पशुओं के आस पास काम करना।


एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2004 में 26 मिलियन बच्चे और 20 साल से कम आयु के किशोर खेतों में रह रहे थे। इनके साथ लगभग 699,000 युवा भी खेतों में काम कर रहे थे।

खेतों में रहने वाले युवाओं के अलावा, 2004 में, अतिरिक्त 337,000 बच्चों और किशोरों को अमेरिका के खेतों में नौकरी पर रखा गया।

औसतन 103 बच्चे प्रति वर्ष खेतों में मारे जाते हैं (1990-1996)। इन मौतों की लगभग 40 प्रतिशत कार्य से संबंधित थीं। 2004 में, एक अनुमान के अनुसार 27,600 बच्चे और किशोर खेतों में घायल हो गए; इनमें से 8,100 खेती के कार्य के कारण ही घायल हुए थे।





निम्नलिखित व्यापक उद्देश्यों के साथ यह योजना लागू की जा रही है:


मृदा-स्वास्थ्य तथा इसकी ऊर्वरता बढ़ाने हेतु द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों एवं जैविक खादों तथा जैव ऊर्वरकों सहित रासायनिक ऊर्वरकों के विवेकपूर्ण प्रयोग के जरिए एकीकृत पोषण प्रबंधन (आईएनएम) की सुविधा प्रदान करना और उसे बढ़ावा देना।

मृदा परीक्षण सुविधाओं को मजबूत करना तथा किसानों को मृदा उत्पादकता एवं आर्थिक लाभ प्राप्ति हेतु मृदा परीक्षण आधारित अनुशंसाएँ करना।

हरित खाद के जरिए मृदा-स्वास्थ्य में सुधार करना।

ऊर्वरता तथा फसल उत्पादकता में वृद्धि हेतु अम्लीय अथवा क्षारीय भूमि में सुधार लाकर, कृषि में प्रयुक्त करने के लिए मृदा सुधारों को बढ़ावा देना और इसकी सुविधा उपलब्ध कराना।

ऊर्वरक प्रयोग की दक्षता बढ़ाने हेतु सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के प्रयोग को बढ़ावा देना।

ऊर्वरकों के संतुलित प्रयोग के लाभों के संदर्भ में किसानों के खेतों में प्रदर्शन सहित प्रशिक्षण और प्रदर्शन के जरिए एसएलटी/प्रसार कर्मचारियों तथा किसानों की कुशलता एवं ज्ञान तथा उनके क्षमता-निर्माण को उन्नत बनाना।

“ऊर्वरक नियंत्रण आदेश” को प्रभावी तरीके से लागू किये जाने हेतु राज्य सरकारों के क्रियान्वयन अधिकारियों को प्रशिक्षित करने सहित फर्टिलाइजर क्वालिटी कंट्रोल सुविधाओं को बल प्रदान कर ऊर्वरकों की गुणवत्ता-नियंत्रण सुनिश्चित करना।

ऊर्वरकों के संतुलित प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु अनेक क्रियाकलापों तथा एसएलटी/ऊर्वरक जाँच प्रयोगशाला की स्थापना तथा उन्नयन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना।
अंगभूत अवयव

योजना के अंगीभूत अवयवों में शामिल है




i. मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को मजबूत करना


सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के विश्लेषण हेतु 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 500 नये मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं तथा 250 चलंत मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना।


सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के विश्लेषण हेतु वर्तमान में कार्यरत 315 राज्य मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को सबल बनाना।


मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के कर्मचारियों/ प्रसार अधिकारियों/किसानों तथा क्षेत्र प्रदर्शन/कार्यशाला इत्यादि के द्वारा क्षमता निर्माण करना।


ऊर्वरक के संतुलित प्रयोग के लिए आँकड़ा कोष का निर्माण करना जो स्थल के लिए विशेषीकृत है।


प्रत्यक्ष प्रदर्शन के जरिए प्रत्येक मृदा परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा 10 गाँवों को गोद लेना।


ग्लोबल पोजिशनिंग प्रणाली का प्रयोग कर जिले का डिजिटल मृदा नक्शा तैयार करना तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्/ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा मृदा ऊर्वरता निगरानी तंत्र तैयार करना।

ii. एकीकृत पोषण प्रबंधन के प्रयोग को बढ़ावा / जैव ऊर्वरकों के प्रयोग को प्रोत्साहन अम्लीय भूमि में मृदा सुधारों (चूना/क्षारीय स्लैग) को बढ़ावा।सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का वितरण तथा उनके प्रयोग को प्रोत्साहन।

iii. ऊर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं को सबल करना।


63 कार्यरत राज्य ऊर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं का उन्नयन।

20 नये ऊर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं का राज्य सरकारों द्वारा स्थापना।

निजी/सहकारी क्षेत्र के अंतर्गत सलाहकारी उद्देश्य से 50 ऊर्वरक परीक्षण प्रयोगशालाओं की की स्थापना।
वित्त आवंटन

11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विभिन्न अंगीभूत घटकों के लिए कुल 429.85 करोड़ रुपये का आवंटन, योजना के क्रियान्वयन हेतु स्वीकृत किया गया है।

क्रियान्वयन प्राधिकार




सूक्ष्म सिंचाई का राष्ट्रीय मिशन (NMMI)
सूक्ष्म सिंचाई का राष्ट्रीय मिशन (एनएमएमआई) को एक मिशन के रूप में जून २०१० में आरम्भ किया गया था। NMMI पानी के इस्तेमाल में बेहतर दक्षता, फसल की उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफ़एसएम), तिलहनों, दालों एवं मक्का की एकीकृत योजना (आईएसओपीओएम), कपास पर प्रौद्योगिकी मिशन (टीएमसी) आदि जैसे बडे सरकारी कार्यक्रमों के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई गतिविधियों के समावेश को बढावा देगा। नये दिशानिर्देश पानी के उपयोग की दक्षता में वृद्धि, फसलों की उत्पादकता में वृद्धि करेंगे तथा पानी के खारेपन व जलभराव जैसी मुद्दों का हल भी प्रदान करेंगे।

इस योजना की विशेषताएं हैं:


भारत सरकार के शेयर के अंतर्गत छोटे तथा सीमांत किसान ६० प्रतिशत सब्सिडी प्राप्त करेंगे तथा अन्य लाभार्थियों के लिये ५ हेक्टेयर क्षेत्र तक ५० प्रतिशत।

सूक्ष्म सिंचाई के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी के नई उपकरणों का उपयोग, जैसे अर्ध स्थायी स्प्रिंकलर प्रणाली, फर्टिगेशन प्रणाली, रेती का फिल्टर, विभिन्न प्रकार के वॉल्व आदि।

ज़िलों के बजाय राज्य की लागूकरण एजेंसियों को केन्द्रीय शेयर का जारीकरण।

इस योजना में एक प्रभावी सुपुर्दगी प्रणाली भी है जो सकल खेती के अंतर्गत बढे क्षेत्र के लिये लाभार्थियों, पंचायतों, राज्य की लागूकरण एजेंसियों और अन्य पंजीकृत प्रणाली प्रदाताओं के बीच सघन समन्वय की मांग को पूरा करेगी।

नोडल समिति के रूप में बाग़वानी में प्लास्टिकल्चर के अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय समिति (एनसीपीएएच) देश में एनएमएमआई के प्रभावी लागूकरण पर उचित नीतिगत उपाय प्रदान करती है।

एनसीपीएएच २२ प्रिसिज़न फार्मिंग डेवलपमेंट सेंटर्स (पीएफ़डीसी) के प्रदर्शन और देश में आम तौर पर सूक्ष्म कृषि विधियों के समग्र विकास व उच्च-तकनीक के हस्तक्षेपों की प्रभावी निगरानी करती है।





राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का लक्ष्य कृषि एवं समवर्गी क्षेत्रों का समग्र विकास सुनिश्चित करते हुए 11वीं योजना अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना है।







कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करना,
राज्यों को कृषि और समवर्गी क्षेत्र की योजनाओं के नियोजन व निष्पादन की प्रक्रिया में लचीलापन तथा स्वायतता प्रदान करना,
कृषि-जलवायुवीय स्थितियाँ, प्रौद्योगिकी तथा प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाएँ तैयार किया जाना सुनिश्चित करना,
यह सुनिश्चित करना कि राज्यों की कृषि योजनाओं में स्थानीय जरूरतों/फसलों/ प्राथमिकताओं को बेहतर रूप से प्रतिबिंबित किया जाए,
केन्द्रक हस्तक्षेपों के माध्यम से महत्वपूर्ण फसलों में उपज अंतर को कम करने का लक्ष्य प्राप्त करना,
कृषि और समवर्गी क्षेत्रों में किसानों की आय को अधिकतम करना, और
कृषि और समवर्गी क्षेत्रों के विभिन्न घटकों का समग्र ढंग से समाधान करके उनके उत्पादन और उत्पादकता में मात्रात्मक परिवर्तन करना।




गेहूँ, धान, मोटे अनाज, छोटे कदन्न, दालों, तिलहनों जैसी प्रमुख खाद्य फसलों का समेकित विकास,
कृषि यंत्रीकरण,
मृदा स्वास्थ्य के संवर्धन से संबंधित क्रियाकलाप,
पनधारा क्षेत्रों के अन्दर तथा बाहर वर्षा सिंचित फार्मिंग प्रणाली का विकास और साथ ही पनधारा क्षेत्रों, बंजर भूमियों, नदी घाटियों का समेकित विकास,
राज्य बीज फार्मों को सहायता,
समेकित कीट प्रबंधन योजनाएँ,
गैर फार्म क्रियाकलापों को बढ़ावा देना,
मण्डी अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण तथा मण्डी विकास,
विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए अवसंरचना को मजबूत बनाना,
बागवानी उत्पादन को बढ़ावा देने संबंधी क्रियाकलाप तथा सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को लोकप्रिय बनाना,
पशुपालन एवं मात्स्यिकी विकाय क्रियाकलाप,
भूमि सुधारों के लाभानुभोगियों के लिए विशेष योजनाएँ,
परियोजनाओं की पूर्णता की अवधारणा शुरू करना,
कृषि/बागवानी को बढ़ावा देने वाले राज्य सरकार के संस्थाओं को अनुदान सहायता,
किसानों के अध्ययन दौरे,
कार्बनिक तथा जैव-उर्वरक एवं
अभिनव योजनाएँ।
बजट स्वीकृति

11वीं पंचवर्षीय योजनावधि के दौरान इस योजना के लिए 25 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किये गये हैं।






राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के अंतर्गत वित्त पोषण की पात्रता के लिए सरकार ने रेशम उत्पादन और सम्बद्ध गतिविधियों का RKVY के तहत समावेश का फैसला किया है। इसमें रेशम कीट के उत्पादन के चरण तक रेशम उत्पादन शामिल रहेगा और साथ ही कृषि उद्यम में रेशम कीट के उत्पादन व रेशम धागे के उत्पादन से लेकर विपणन तक विस्तार प्रणाली भी।

अब RKVY का लाभ रेशम उत्पादन विस्तार प्रणाली में सुधार, मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर करने, वर्षा से पोषित रेशम उद्योग को विकसित करने तथा एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए में लिया जा सकता है। लाभ रेशम के कीड़ों के बीज बेहतर करने तथा क्षेत्र के मशीनीकरण के लिए होंगे। यह निर्णय बाजार के बुनियादी ढांचे के विकास तथा सेरी उद्यम को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान करेगा। गैर कृषि गतिविधियों के लिए परियोजनाएं हाथ में ली जा सकती हैं और भूमि सुधार के लाभार्थियों जैसे सीमांत व छोटे किसानों आदि को विशेष योजनाएं स्वीकृत कर रेशम कीट पालन किसान को अधिकतम लाभ दिया जा सकता है।





यह नीति कृषि क्षेत्र को फिर से सशक्त करने और किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के उद्देश्य से बनाई गई है।



*सरकार ने 2004 में किसानों पर राष्ट्रीय आयोग का गठन प्रो. एम.एस.स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किया था। आयोग के गठन के पीछे देश के विविध कृषि-उत्पाद क्षेत्रों में अलग कृषि व्यवस्था में उत्पादन, लाभ और दीर्घकालिकता को बढ़ावा देने की सोच थी। साथ ही, ऐसे उपाय भी सुझाना था ताकि शिक्षित और युवावर्ग को खेती की तरफ आकर्षित कर उसे अपनाये रखने के लिए मनाया जा सके। इसके अलावा एक वृहद् मध्यम अवधि का रणनीति अपनाई जाए, ताकि खाद्य और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। आयोग ने अपनी अंतिम प्रतिवेदन अक्तूबर 2006 में सरकार को सौंपी।

*आयोग द्वारा पुनरीक्षित किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति के प्रस्तावों और कई केन्द्रीय मंत्रालयों, विभागों और राज्य सरकारों की टिप्पणी/सुझाव के आधार पर भारत सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति -2007 की संकल्पना और मंजूरी दी। दूसरी बातों के अलावा यह नीति किसानों की आर्थिक दशा में उत्पादन, लाभ, पानी, जमीन और दूसरी सहायक सुविधाओं में इजाफा कर अहम बदलाव लाने का लक्ष्य रखती है। साथ ही, यह उचित मूल्य नीति व आपदा प्रबंधन जैसे उपाय भी करता है।




किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 की बातें और प्रावधान इस प्रकार हैं-


मानवीय पक्ष- मुख्य जोर किसानों की आर्थिक दशा सुधारने पर रहेगा, न कि केवल उत्पादन और उत्पादकता केन्द्र में रहेगी और यह किसानों के लिए नीति निर्धारण की मुख्य कसौटी होगी
किसानों की परिभाषा- यह क्षेत्र में संलग्न हर आदमी को शामिल करती है ताकि उनको भी नीति का फायदा मिल सके
संपत्ति सुधार- यह सुनिश्चित करने के लिए कि गाँवों का हरेक पुरुष या महिला-खासकर गरीब- या तो उत्पादक संपत्ति का मालिक हो या उस तक पहुँच रखता हो
जल की हरेक इकाई पर कमाई- पानी की हरेक ईकाई के साथ उपज को अधिकतम करने का विचार हरेक फसल के उत्पादन में अपनाया जाएगा। साथ ही, पानी के अधिकतम इस्तेमाल के बारे में जागरूकता फैलाने पर भी जोर दिया जाएगा।
सूखा कोड, बाढ़ का कोड औऱ अच्छे मौसम का कोड- यह सूखा और बाढ़ग्रस्त इलाकों में लागू किया जाएगा, साथ ही, ऊसर इलाकों में भी इसे लागू किया जाएगा। इसका उद्देश्य मॉनसून का अधिकतम लाभ उठाना और संभावित खतरों से निबटना है।
तकनीक का इस्तेमाल- नयी तकनीक के इस्तेमाल से भूमि और जल की प्रति ईकाई उत्पादन को बढ़ाना है। जैव-प्रौद्योगिकी, संचार व सूचना प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी), पुनरुत्पादन के लायक ऊर्जा तकनीक, आकाशीय तकनीक और नैनो-तकनीक के इस्तेमाल से एवरग्रीन रेवोल्यूशन (हमेशा हरित क्रांति) की स्थापना की जाएगी। इससे बिना पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाए उत्पादन को बढ़ाया जा सकेगा।
राष्ट्रीय कृषि जैव-सुरक्षा व्यवस्था- यह एक समन्वित कृषीय जैव-सुरक्षा कार्यक्रम की व्यवस्था के लिए स्थापित होगा।
भूमि की देखभाल हेतु सेवाएँ और निवेश- अच्छी गुणवत्ता के बीज, रोगमुक्त रोपण सामग्री-जिसमें हरित गृह में उगाए बीज (इन-विट्रो प्रोपैग्युल)- और मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाकर छोटे खेतों की उत्पादकता बढ़ाई जाएगी। हरेक किसान परिवार को मिट्टी के गुणवत्ता की जानकारी देनेवाला पासबुक दिया जाएगा।
महिलाओं के लिए सहायक व्यवस्था- जब महिलाएँ दिनभर जंगलों या खेतों में काम करती हैं तो उनको सहायक सुविधाएँ जैसे, क्रेचेज, पर्याप्त पोषण और बच्चों के देखभाल की जरूरत होती है।
ऋण एवं बीमा- ऋण की सलाह देनेवाले केन्द्र वहाँ स्थापित किए जाएंगे, जहाँ भारी कर्ज में डूबे किसानों को ऋण राहत पैकेज दिया जाएगा, ताकि वे कर्ज के जाल से निकल सकें। ऋण और बीमा के बारे में जानकारी के लिए ज्ञान चौपाल स्थापित किए जाएंगे।
खेतों में स्कूल की स्थापना की जाएगी ताकि किसान से किसान सीख सकें और प्रसार की सुविधा भी मजबूत की जा सके।
किसानों के लिए समन्वित राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा योजना- इससे किसानों को बीमारी और बुढ़ापे वगैरह में बीमा के जरिए आजीविका सुनिश्चित कराया जा सकेगा।
न्यूनतम समर्थन मूल्य- पूरे देश में प्रभावी तरीके से ऐसी व्यवस्था की जाएगी, ताकि किसानों को कृषि उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।
एकीकृत राष्ट्रीय बाजार- आंतरिक नियंत्रण और रोकों को हटाकर पूरे देश में एकीकृत बाजार की व्यवस्था
खाद्य सुरक्षा को व्यापक बनाना- जिसमें पोषक फसलों जैसे बाजरा, जवार, रागी और कोदो को भी शामिल किया जाएगा जो शुष्क भूमि में उगाए जाते हैं।
भविष्य के किसान- किसान सहकारी खेती अपना सकते हैं, सेवा सहकारिता बना सकते हैं, स्वयं सहायता समूह के जरिए सामूहिक खेती कर सकते हैं, छोटी बचत वाली संपत्ति बना सकते हैं, निविदा खेती को अपना सकते हैं और किसानों की कंपनी बना सकते हैं। इससे उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है, छोटे किसानों की क्षमता में बढ़ोतरी होने और कई तरह की आजीविकाओं के निर्माण की भी संभावना है। यह कृषि उत्पाद संशोधन और एकीकृत कृषि व्यवस्था के जरिए होगा।
खाद्य सुरक्षा पर एक कैबिनेट समिति बनाई जाएगी

नीति के क्रियान्वयन की व्यवस्थाः

नीति के क्रियान्वयन के लिए कृषि और सहकारिता विभाग एक अंतर्मंत्रालयीय समिति का गठन किया जाएगा, जो इस ध्येय के लिए आवश्यक योजना बनाएगी। कृषि समन्वयन समिति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति के एकीकृत क्रियान्वयन का समन्वय और समीक्षा करेगी।


किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति 2007 को राज्यसभा में 23 नवंबर 2007 और लोकसभा में 26 नवंबर 2007 को केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार ने रखा।


राष्ट्रीय किसान नीति- 2007

पीआईबी विज्ञप्ति, 26 नवंबर 2007




*भारत सरकार ने, खाद्यान्न उत्पादन में आई स्थिरता एवं बढ़ती जनसंख्या की खाद्य उपभोग को ध्यान में रखते हुए, अगस्त 2007 में केन्द्र प्रायोजित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना का शुभारंभ किया।

*इस योजना का मुख्य लक्ष्य सुस्थिर आधार पर गेहूँ, चावल व दलहन की उत्पादकता में वृद्धि लाना ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके। इसका दृष्टिकोण समुन्नत प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं कृषि प्रबंधन पहल के माध्यम से इन फसलों के उत्पादन में व्याप्त अंतर को दूर करना है।




राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तीन घटक होंगे-

1.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- चावल

2.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन– गेहूँ

3.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन– दलहन

.राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2007-08 से 2011-12) के लिए वित्तीय निहितार्थ 4882.48 करोड़ रुपये की होगी। इसके लिए लाभुक किसान उन जमीन पर शुरू की गई गतिविधियों पर आने वाली कुल लागत का 50 प्रतिशत भाग का वहन करेंगे अर्थात् उन्हें आधा हिस्सा देना होगा।

.लाभुक किसान इसके लिए बैंक से ऋण भी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की राशि बैंकों को जारी की जाएगी।
इस योजना के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप वर्ष 2011-12 तक चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन, गेहूँ के उत्पादन में 8 मिलियन टन व दलहन के उत्पादन में 2 मिलियन टन की वृद्धि होगी। साथ ही, यह अतिरिक्त रोजगार के अवसर भी उत्पन्न करेगा।





1-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- चावल के अंतर्गत 14 राज्यों के 142 जिले (आँध्र प्रदेश, असोम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश,5उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल) शामिल होंगे।

2-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- गेहूँ के अंतर्गत 9 राज्यों के 142 जिले (पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल) शामिल किये जाएंगे।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन– दलहन योजना के अंतर्गत 16 राज्यों के 468 जिले (आँध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल) शामिल किये जाएंगे।

3-इस योजना के अंतर्गत इन जिलों के 20 मिलियन हेक्टेयर धान के क्षेत्र, 13 मिलियन हेक्टेयर गेहूँ के क्षेत्र व 4.5 मिलियन हेक्टेयर दलहन के क्षेत्र शामिल किये गये हैं जो धान व गेहूँ के कुल बुआई क्षेत्र का 50 प्रतिशत है। दलहन के लिए अतिरिक्त 20 प्रतिशत क्षेत्र का सृजन किया जाएगा।











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