पातगोभी की खेती कैसे करें How to cultivate Cabbage.Help you hindi



पातगोभी की खेती कैसे करें  -How to cultivate Cabbage.Help you hindi

पातगोभी की खेती कैसे करें How to cultivate Cabbage.Help you hindi




                                               

                                                पातगोभी
                                               (Cabbage)      

                    (वैज्ञानिक नाम-Brassica oleracea var. capitata)
                                        (कुल -Brassicaceae)                             

  • पातगोभी

  • पातगोभी को बंद गोभी, करमकल्ला और बंदा के नाम से भी पुकारते हैं यह रवि रितु की तरकारी है -जिसमें बहुत से कोमल पत्ते मिलकर पातगोभी फूल बनाते हैं  इन पत्तो का स्वादिस्ट साक बनता है आलू और मटर के साथ मिलाकर पात गोभी  बड़ी मात्रा में भी प्रयोग किया जाता है
  • पात गोभी में अनेक पौष्टिक तत्व होते हैं जैसे विटामिन सी इसमें प्रचुर मात्रा पाई जाती है विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है लेकिन विटामिन ए कम मिलता है पात गोभी में खनिज लवण भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं पात गोभी का साग बहुमूत्र के रोगियों को लाभकारी होता है- इसका असर ठंडा होता है ,कब्ज रोकता है भूख बढ़ाती है और पाचन क्रिया को तेज करती है



                                             जलवायु 

  • पातगोभी शीतोष्ण और नम जलवायु का पौधा है इसको ओले और पानी से भारी क्षति पहुंचती है आकाश में बादल होने पर पौधों की बढ़वार अच्छी होती है ताप में वृद्धि होने पर पात गोभी के गुणो पर विपरीत प्रभाव पड़ता है 
  • पातगोभी ठंडे देश का पौधा होने के कारण ठंडी जलवायु में ही पसंद करती है -गर्मी के कारण इस की फसल बिगड़ जाती है
  •  पातगोभी में पाला सहन करने की क्षमता फूलगोभी से अधिक होती है- लेकिन यह फसल अपेक्षाकृत नम जलवायु चाहती है अतः पातगोभी की सफल खेती के लिए मौसम ठंडा और नम होना चाहिए

                                                भूमि

  • फूलगोभी के समान पातगोभी के लिए भी दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है लेकिन बलुई दोमट से लेकर मृतिका दोमट तक में पातगोभी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है
  •  जहां तक संभव हो इसकी शीघ्र पकने वाली जातियों को बलुई दोमट और देर पकने वाली जातियों को मृतिका दोमट में उगाना चाहिए भूमि से पानी का निकास भी प्रबंध होना चाहिए

  • भूमि की तैयारी

  • पातगोभी उगाने के लिए खेत को बहुत अच्छी तथा गहरी जुताई की आवश्यकता होती है इसके लिए यह जरूरी है ,कि कम से कम एक बार खेत को किसी मिट्टी पलटने वाले हल से जूत जाए और उसके बाद पांच से छह बार उस की जुताई देसी हल की जाए खेत में पटेला चलाकर खेत को समतल कर देना चाहिए जिससे उसमें ढेले इत्यादि ना रहे


(1.)बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा

  • पातगोभी की अगेती किस्म की बुवाई नर्सरी में अगस्त के दूसरे सप्ताह से लेकर सितंबर के अंत तक की जाती है पछेती किस्म की बुवाई सितंबर -अक्टूबर के महीने में करनी चाहिए पर्वती क्षेत्र में सब्जी उत्पादन के लिए मार्च से जून तक और बीज उत्पादन के लिए जुलाई-अगस्त में बीज की बुवाई करते हैं 
  • अगेती किस्म की एक हेक्टेयर में रोपाई करने के लिए लगभग 600 से 700 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है पछेती किस्म के लिए 375 से 400 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है अगेती  किस्म  की पौध तैयार करते समय तापमान अधिक और धुप तेज रहती है जिसके कारण कुछ पौधे छोटी अवस्था में ही मर जाते इसलिए बीज की मात्रा अधिक रखनी चाहिए


(2.)पौध तैयार करना


  • पातगोभी की पौध तैयार करने के लिए पौधशाला के लिए स्थान का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौधशाला खुले और धूप वाले स्थान पर हो जो कि सिंचाई के साधन के निकट हो सामान्य रूप से 1 हेक्टेयर की रोपाई करने के लिए लगभग 100 वर्ग मीटर क्षेत्र की तैयारी की गई पौध पर्याप्त रहती है पौधशाला की भूमि  अच्छी तरह खुदाई या जुताई करके खरपतवार निकालकर भूमि में गोबर की सड़ी हुई खाद मिला लेनी चाहिए 
  • भूमि को समतल करने के बाद उसमें 1 मीटर चौड़ा और 5 मीटर लंबी क्यारियां बना ली जाती हैं क्यारिया जमीन से 15 सेंटीमीटर ऊंची बनानी चाहिए । 2 क्यारियां के बीच 30 सेमी चौड़ी  नाली भी बनानी चाहिए  ताकि वर्षा का फालतू पानी क्यारियों के बाहर निकल सके और इन्हीं नालियों में बैठकर क्यारियों से खरपतवार आदि निकाला जा सके क्योंकि लगभग 8 सेंटीमीटर ऊपरी सतह पर गोबर की खाद या पत्तियों की सड़ी  खाद मिलानी चाहिए  खाद मिलाने के बाद क्यारियां  को समतल कर लिया जाता है बीज को बोने से पहले  कैप्टान या थएराम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए
  •  बीज को क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी कतारों में 1 सेंटी मीटर की गहराई पर दिया जाता है बीज को बोने के बाद भी गोबर की खाद व मिट्टी के मिश्रण से ढक देते हैं इसके बाद क्यारियों को सूखी घास की हल्की सी परत से ढक देते हैं ताकि बीज के जमाव के लिए सही तापमान और नमी बनी रहे बीज बोने के बाद से उनके जमाव तक नियमित रूप से बाल्टी में पानी भरकर छिड़काव करना चाहिए
  •  जब बीजों का जमाव हो जाता है तो सूखी घास की परत को हटा दिया जाता है इसके बाद आवश्कतानुसार क्यारियों के मध्य बनी नालियों से सिंचाई करते रहना चाहिए पौधों के साथ लगे खरपतवारों को भी निकालते रहना चाहिए पौधशाला में बीज बोने के 4से 5 सप्ताह के बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो तैयार हो जाते हैं

  • पौध की रोपाई


  • जिस खेत में पौध की रोपाई करनी होती है उसे अच्छी प्रकार से तैयार करते हैं और फिर उसमें आवश्यकतानुसार लंबाई चौड़ाई की क्यारियां बना ली जाती हैं जब पौधे 3 से 3 पतियों के हो जाए तो उसे नर्सरी से उखाड़कर मुख्य खेत में लगा दिया जाता है  पौध की रोपाई शाम के समय करनी चाहिए और रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए पातगोभी की अगेती तथा पछेती किस्म की रोपाई के लिए निम्नलिखित दूरी सही होती है 

               (1.)अगेती किस्म- 45* 45 सेंटीमीटर
               (2.)पछेती किस्में- 60* 45 सेंटीमीटर

तथा जड़ वाले पौधे के हीरो पाई करनी चाहिए कमजोर तथा रोग ग्रस्त पौधे को निकाल कर फेंक देना चाहिए

  • खाद और उर्वरक


  • पातगोभी की फसल भूमि से काफी अधिक मात्रा में पोषक तत्व लेती है 250 क्विंटल उपज देने वाली फसल 1 हेक्टेयर भूमि से 110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 110 किलोग्राम पोटाश ले लेती है


  •  अतः पात गोभी की अच्छी उपज लेने के लिए खाद तथा उर्वरक दोनों का ही प्रयोग अनिवार्य होता है खेत की तैयारी करते समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला लेना चाहिए 


  • उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के अनुसार करना चाहिए यदि किसी कारणवश मिट्टी की जांच ना कराई जा सके तो 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए 


  • नाइट्रोजन की मात्रा फास्फोरस और पोटाश की मात्रा से पहले खेत में अंतिम जुताई के समय दे देनी चाहिए अच्छा  रहता है 


  •  जिस कतार में पौधे की रोपाई करनी हो उससे 5 से 10 सेंटीमीटर बगल में उर्वरक डाला जाये  ताकि पौधों की जड़ें उनकी अधिक से अधिक मात्रा को ग्रहण कर सकें -और उर्वरकों के पोषक तत्वों का बहुत कम भाग व्यर्थ जाने पाए नाइट्रोजन की आधी मात्रा को  5 से 6 सप्ताह बाद कतारों के बीच  फैला देना चाहिए 

  • सिंचाई एवं जल निकास


  •  पातगोभी के उचित विकास के लिए भूमि में सदैव नमी का रहना आवश्यक है अतः फसल की उचित समय पर सिंचाई आवश्यक है सिंचाई 10 से 15 दिन के अंदर अंदर से की जानी चाहिए फूल बनने पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए 


  •  खेत में पानी हर जगह समान रूप में लगाना चाहिए क्योंकि इस रिश्ते में अधिक पानी देना भी उतना ही हानिकारक होता है जितना की ज़रूरत से कम पानी देना यदि खेत में अधिक पानी लग जाए तो उसको खेत से बाहर निकाल देना चाहिए 


  • खेत में किसी कारणवश लंबे समय तक सिंचाई ना की जा सकती हो और एक दम से भारी सिंचाई कर दी जाए तो फूल फट जाते हैं  जब फसल पकने की अवस्था में हो उस समय  सिंचाई बंद कर देनी चाहिएअन्यथा सिचाई देने के  24 घंटे के अंदर अधिकतर  फूल फट सकते हैं

  • खरपतवार नियंत्रण 

  • पातगोभी की फसल के साथ-साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी उग जाते हैं जो मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों और नमी के लिए फसल के साथ संघर्ष करते हैं जिसके कारण पौधों के विकास वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है परीक्षणों से पता चला है कि खरपतवारों द्वारा पातगोभी की उपज में लगभग 30% कमी आ जाती है 
  •  इनकी रोकथाम के लिए उचित प्रबंध करना चाहिए सिंचाई के बाद जब भूमि निराई गुड़ाई योग्य हो जाए तो निराई गुड़ाई करके खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए पातगोभी की फसल में 2-3 निराई गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है
  •  रोपाई के 5 से 6 सप्ताह बाद निराई -गुड़ाई करते समय पौधों के तने के चारों ओर मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए निराई -गुड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पौधों को किसी प्रकार की चोट ना पहुंचाएं गुड़ाई उतनी ही करें पातगोभी की जड़ें कटने ना पाए क्योंकि पातगोभी  कि जड़ ऊपर होती है 

  • रोकथाम

    खरपतवारनाशी दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है 

(1.)बेसालिन का 1 किलोग्राम सक्रिय अवयव प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर पातगोभी की रोपाई से पहले खेत में छिड़क कर मिट्टी में मिला देना चाहिए इस दवा के प्रयोग से 1 वर्षीय खरपतवार नहीं पाते उग हैं





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