लौकी की खेती कैसे करें . help you hindi

लौकी की उन्नतशील खेती कैसे करें - (How to cultivate gourd's advanced farming )




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                                                 लौकी            
                                             (Bottle Gourd)
                            वानस्पतिक नाम  Lagenaria siceraria
                                              कुल  - Cucurbitaceae
                                                                                   

उत्पत्ति का स्थान 

लौकी से मानव भोजन का नाता बहुत पुराना जाना जाता है मनुष्य शायद उसके गुणों से अपनी सभ्यता के प्रारंभिक दिनों में ही परिचित हो गया था मेक्सिको की गुफाओं ईशा 7000 से 5500  ई ०  पूर्व मिस्र के पुराने पिरामिडों 3500 से ३३०० पूर्व में उपस्थित शायद इसी बात का घोतक है भारत में इसकी खेती 2000 वर्ष पूर्व होती आ रही है भारत में मालाबार तट और देहरादून के जंगलों अफ्रीकी देश मूल का तथा इथोपिया में यह आज भी जंगली रुप में पाई जाती है अनुमान लगाया जाता है कि भारत से अफ्रीका था देशों में फैली है। 

भूमि तथा उसकी तैयारी 

लौकी की खेती प्रायः सभी प्रकार के भूमियों में की जा सकती है परंतु अच्छी उपज के लिए 2 मिनट या बलुई मिट्टी जिसमें जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा हो तथा जल निकास का उचित प्रबंध हो सर्वोत्तम रहती है लौकी की फसल 6.0 से 7.0 PH वैल्यू में अच्छी उपज देती है। 

खेत की तैयारी लौकी बोने के ढंग पर निर्भर करती है यदि तालों में बीज की बुवाई करनी है तो खेत से घास इत्यादि निकालने के लिए एक या दो जुदाई करें या है रो चलाना चाहिए इसके बाद छालों की भूमि में 15 से 20 सेंटीमीटर की गहराई तक को देना चाहिए यदि बीज की बुवाई नालियों में करनी है तो समस्त खेत की तैयारी एक समान करनी चाहिए जिसके लिए तीन से चार जुताइयाँ पर्याप्त रहती हैं। 

बोने  का समय 

लौकी की बुवाई वर्ष में तीन बार की जाती है  -
1. फरवरी -मार्च (जायद फसल )-बोने के 2 माह बाद फल लगना आरंभ हो जाता है और फल अप्रैल से जून तक प्राप्त होते हैं। 

2. जून -जुलाई (बरसाती फसल )-फल अक्टूबर से दिसंबर तक प्राप्त होते हैं। 

3. अक्टूबर- नवम्बर  -  छोटे पौधों की पाली से रक्षा करने के लिए पौधों की घास फूस या सरकंडे की पत्तियों से ढककर रक्षा की जाती है। 

बुवाई का ढंग 

लौकी का बीज गड्ढों में या क्यारियों अथवा नालियों में बह जाता है पौधों की दूरी अग्र प्रकार रखते हैं-
          1. 5 ×1 मीटर  अथवा 2. 5 ×0. 60 
          (पक्ति से पक्ति की दुरी × पौधो पौधो की दुरी )

अधिक फैलने वाली किस्में एवं बरसाती फसल में 3× 1.5 मीटर दूरी रखनी चाहिए। 

 गड्ढे 30 सेंटीमीटर व्यास के उपरोक्त दूरी पर तैयार किए गए जाते हैं इनकी 15 से 20 सेंटीमीटर गहराई तक गुड़ाई  करके खाद और उर्वरक मिला दिया जाता है तथा प्रत्येक गड्ढे में तीन से चार बीज बो दिया जाता है बड़े होने पर गड्ढे में एक या दो स्वस्थ पौधे बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। 

क्यारियों में बोने के लिए 2.5 मीटर चौड़ी उठी हुई क्यारियाँ बनाते हैं क्यारियों  के बीच 7 सेंटीमीटर चौड़ाई की नाली रखते हैं क्यारियों के दोनों किनारों पर तीन से चार बीज इकट्ठे 60 सेमी की दूरी पर दिया जाता है जब कुछ पौधे बड़े हो जाएं तो एक स्थान पर एक या दो पौधे रखनी चाहिए। 

बीज की मात्रा 

4 से 5 किलोग्राम बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है जायद या ग्रीष्मकालीन फसल में अधिक बीज तथा  वर्षाकालीन फसल में कम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

खाद तथा उर्वरक 

लौकी  के लिए 250  से 300 क्विंटल गोबर की खाद तथा 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोज,न 30 -40 किग्रा फास्फोरस और 25 से 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता है गोबर की खाद खेत तैयार करते समय और बुवाई के समय नाइट्रोजन की एक बटे तीन मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूर्ण मात्रा खेत में लगा देनी चाहिए। 

 नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बार में अर्थात  बोने के 30 दिन बाद फल  आने पर बराबर मात्रा में डालकर मिट्टी में मिला दें इसके बाद सिंचाई अवश्य करें। 

सिंचाई 

गर्मी की फसल को पाचवे दिन और जाड़े की फसल को 10 -15 दिन अंतर पर सिचाई करनी चाहिए। 

निराई गुड़ाई एवं देखभाल 

उगते हुए पौधों की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।  एक स्थान पर एक या दो पौधे बढ़ने देना चाहिए खरपतवारों को नियंत्रण में रखने के लिए तीन से चार निराई गुड़ाई करें पौधों की पानी से मुड़ जाने ना दें ग्रीष्म ऋतु में लौकी की बेल भूमि पर खेलकर बढ़ती है। 

 जबकि वर्षा ऋतु में पौधों को किसी आधार पर चढ़ाने की आवश्यकता होती है गांव में थप्पड़ों पर्स की बलि चढ़ा दी जाती है जहां कि वह खूब फलती-फूलती है। 

पादप नियामक या हार्मोन का प्रयोग

खीरा वर्गीय फसलों में नर पुष्प अधिक संख्या में पैदा होते हैं मादा पुष्पो की संख्या बढ़ाने के लिए एवं फल (जल्दी10 -15 दिन पहले ) प्राप्त करने के लिए पौधों की बढ़वार की अवस्था में एथिरेल हार्मोन  छिड़काव करना चाहिए इसके उपचार से उपज दुगनी होती है। 

मादा पुष्पों की संख्या बढ़ाने के लिए मेलिक हाइड्राज़ाइड (MH)या 2, 3, 5,-ट्राइआयोडोबेन्जोइक अम्ल (TIBA)  का 50 पी ० पी ० एम ० का छिड़काव कर सकते हैं। 

उपज 

. 150 -200 कु ० प्रति हेक्टेयर "

कीड़ो और बीमारियों की रोकथाम 

(1.)- लौकी का लाल भृंग (Red Pumpkin Beetle)

 पहचान -यह लाल रंग का होता है इसका सर गहरा भूरा या काळा रंग का होता है। 

रोकथाम -इसकी रोकथाम के लिए कारबराइल 0. 1 %(सेविन 50 WP )  कीटनाशी रसायन के 2 -3 छिड़काव करने चाहिए। 
राख में अगर हम मिट्टी के तेल की कुछ बुँदे मिला ले और मलमल के कपडे की थैली में भरकर पौधो के ऊपर छिड़काव करने से किट पत्तियों को नहीं खा सकते है। 

(2.)-माहूँ   

पहचान- माहू कीट काफी छोटे मुलायम हरे रंग के चूसने वाले कीट होते हैं यह पौधों के मुलायम भाग पर समूह में पाए जाते हैं। 

रोगथाम -जब पौधे छोटे हो और फल नहीं आ रहे हो उस समय डाईमेथोएट 0. 03%  30 ई सी ० छिड़काव करना चाहिए।

अगर फल आना  शुरु हो गए हो उस समय मैलाथियान 0. 1 % 50 ई सी ०  नामक कीटनाशी दो से तीन छिड़काव करने चाहिए छिड़काव के पहले सभी तैयार फलों को तोड़ लेना चाहिए।

लौकी की फल मक्खी 

पहचान-मक्खी लाल भूरे रंग की होती है जिसके पंख चमकीले रंग के होते हैं ऊपर का भाग लड्डू के आकार का होता है और इसका अंतिम सिरा नुकीला होता है जिसकी सहायता से मादा मक्खी फलों के भीतर अंडा देती हैं
रोगथाम -मेलाथियान का 1% का 600 से 800 लीटर घोल प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। 
सड़े हुए पलों को एकत्रित करके गहरा जमीन में गाड़ देना चाहिए। 
 जिससे मक्खियां नष्ट हो जाएं छोटे स्तर पर फलों को पॉलिथीन पेपर से ढक देना चाहिए। 

लौकी का लाल पुती बग 

पहचान- यह किट लाल और काले रंग का चूसने वाला बग  होता है जिसको स्पर्श करने पर एक बदबूदार पदार्थ निकलता है ये कीट  पत्तियों औरकोमल बेलों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और सूख जाती है।  


रोगथाम - इसके नियंत्रण के लिए 10%  कारबराइल  5%  मैलाथियान धूल का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।  कारबराइल 0.1% (750 मी ० ली ० 500 लीटर पानी में घोलकर )  छिड़काव अधिक प्रभावशाली होता है। 

रोग 

चूरड़ी फफूद - इस रोग में पत्तियों के तनो  पर सफेद रंग की परत जम जाती है और बाद में पत्तियां भूरी  होकर सूख जाती हैं इसकी रोकथाम के लिए 2 किलोग्राम मोरोसाइड दवा को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़के।  2 किलो घुलनशील गंधक के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। 

कोमल फफूंदी-  पत्तियों के ऊपर पीला या लाल भूरा धब्बा पड़ जाता है इसके रोकथाम के लिए बोर्डेक्स  मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए अथवा डायथेन एम-45 के 0.2% घोल का छिड़काव करना चाहिए।

फल सड़न 

कद्दू वर्ग की सभी सब्जियों को फल सड़न रोग बहुत हानि पहुंचाता है यह रोग एक प्रकार की फफूंद के कारण होता है यह रोग  उन फलों को लगता है जो जमीन के संपर्क में रहते हैं या जमीन के काफी निकट लटक रहे होते हैं। 

यह रोग लगने पर सबसे पहले फल पर गहरे हरे रंग के दो धब्बे नजर आते हैं।  शुरू में यह धब्बे छोटे होते हैं ,फिर किंतु बाद में धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं हल्का धब्बे वाला भाग सड़ने लगता है रोकथाम इसकी रोकथाम के लिए फलों को भूमि में नहीं छूने देना चाहिए। और बालों को ऊपर चढ़ा देना चाहिए वातावरण में अधिक नमी होने पर बैलों पर फफूंद नाशक रसायन जैसे ब्लाईटास्क -50 या डाईथेन जेड -78 का 0. 3%   प्रतिशत छिड़काव करना चाहिए। 

मोजेक रोग 

रोगी पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं फलों का आकार खराब हो जाता है यह रोग विषाणु द्वारा फैलता है जिसे कीट फैलाते हैं इससे बचाव के लिए 0.2% मैलाथियान के घोल का 10 से 15 दिन के अंतर से छिड़काव करना चाहिए। 

  











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