फूलगोभी की खेती- Phoolgobhi ki kheti kaise kare full jankari .help you hindi

                                         
                                             फूलगोभी की खेती-

                                          (cultivate cauliflower )

फूलगोभी की खेती- Phoolgobhi ki kheti kaise kare full jankari .help you hindi

    फूलगोभी की खेती-  फूलगोभी की खेती करते वक्त विशेष ध्यान देना चाहिए जो निम्नलिखित है !
      
1. भूमि की तैयारी -फूलगोभी के लिए खेत को अच्छी प्रकार से तैयार करना चाहिए । एक बार मिट्टी पलटने वाला हल चलाकर खेत को लगभग 20 सेंटीमीटर गहरा जोतना चाहिए खेत में देसी हल की प्रत्येक   जुताई बाद पटेला भी चलाते रहना चाहिए जिससे भूमि में उत्पन्न ढेले समतल हो जाएं देशी हल से 5-6 जुदाईयां पर्याप्त होती हैं !    

     फूलगोभी की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए?
      फूल गोभी शीतोष्ण कटिबंध की तरकारी है इस फसल की सामान्य वृद्धि के लिए अधिक समय तक ठंडी जलवायु तथा वायुमंडल में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है अच्छे अंकुरण के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा रहता है इस फसल को पाला बहुत हानि पहुंचाता है खेत पौधों को खेत में रुकते समय अधिक ताप होने पर फूलों का रंग पीला पड़ जाता है और फूल ठीक तरह से नहीं बढ़ते पौधों के प्रारंभिक जीवन में कम ताप होने पर तो पौधे में शीघ्र ही छोटे-छोटे फूल निकल आते हैं!


                               गोभी का पौधा कैसे तैयार किया जाता है-


        फूलगोभी का बीज छोटा और पौधे कोमल होने के कारण उसे पहले   रोपण क्यारी  या पौधे घर में बोकर पौध तैयार करने की आवश्यकता होती है रोपण क्यारी  में खेत की अपेक्षा पौधों की अधिक देखभाल रखी जाती है


                                                             

        1.बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा

         फूलगोभी की विभिन्न किस्मों का बीज उचित समय पर बोना आवश्यक होता है बीज को उसके बोने के सही  समय से पहले या बाद में बोने पर ना केवल अंकुरण पर ही  प्रभाव पड़ता है बल्कि यदि उचित समय पर ना की  जाए और किसी अन्य किस्म का बीज बोया जाता है तो उसमें फूल जल्दी आ जाते हैं और फूलों का आकार भी  छोटा रह जाता है बीज की बुवाई उचित समय पर कर के इन प्रभावों से बचा जा सकता है फूल गोभी की विभिन्न  किस्मों के बीज की नर्सरी में बुवाई का उचित समय निम्न प्रकार है-
        1.बहुत अगेती  किस्में -  मई के अंत से जून के प्रथम सप्ताह तक
        2.अगेती  किस्में-    जून माह में 
        3.मध्यम  किस्में-    मध्य जुलाई-अगस्त 
        4.पछेती किस्में-    सितंबर अक्टूबर

        NOTE-  अगेती तथा मध्य मौसमी किस्मों की एक हेक्टेयर में रोपाई करने के लिए लगभग 600 से 700 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है । पछेती किस्म के लिए 375 से 400 ग्राम बीज की पौध पर्याप्त रहती है। अगेती व मध्यम मौसमी किस्म की पौध तैयार करते समय तापमान अधिक और धूप तेज रहती है। जिसके कारण कुछ पौधे मर जाते हैं इसलिए बीज की मात्रा अधिक रखनी चाहिए !                                                 

              2 .पौधे तैयार करने की विधि-

            फुल गोभी की पौध तैयार करने के लिए अच्छी और उचित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि का चयन करना चाहिए 1 हेक्टेयर की रोपाई करने के लिए लगभग 2 वर्ग मीटर क्षेत्र में तैयार की गई पर पर्याप्त रहती है भूमि को अच्छी प्रकार से तैयार करने के बाद संपर्क कर लेना चाहिए और फिर उसमें 1 मीटर चौड़ी और 5 मीटर लंबी क्यारियां बना ली जाती है क्यारियां जमीन से 15 सेंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए क्योंकि चारों ओर 30 सेमी चौड़ी नालियां भी बनानी चाहिए ताकि वर्षा का फालतू पानी बाहर निकल सके और इन्हीं नालियों में बैठकर क्यारियों से खरपतवार  निकाले जा सके  लगभग 8 सेंटीमीटर ऊपर सतह पर गोबर की सड़ी खाद्य पत्तियों की सड़ी गोबर खाद मिलाने के बाद खेतों को समतल कर देना चाहिए।
            बोने से पहले कैप्टन या थाईराम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज से अवश्य शोधित कर लेना चाहिए अगेती फसल के लिए बोई गई पौध को तेज धूप था वर्षों से बचाने के लिए तैयारियों के ऊपर किसी छप्पर या पॉलिथीन की चादर से छांव करना चाहिए इस प्रकार 4 से 6 सप्ताह में पौधे रोपने योग्य हो जाते हैं  !        

              3.पौध की रोपाई

               जिस खेत में धान की रोपाई करनी हो उसको उसकी अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए और उसमें क्यारी बनाने चाहिए क्यारियों की लंबाई चौड़ाई अपनी आवश्यकता अनुसार रखी जा सकती है पौध की रोपाई हमेशा शाम के समय करनी चाहिए क्योंकि रात में पौधे कम मरते हैं रुपए के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए फूलगोभी की विभिन्न किस्मों की पौधे लगाने से निम्नलिखित दूरी उचित पाई गई है!

              1. अगेती किस्में -       45×45
              2.माध्यमिक किस्में -  60×45
              3.पछेती किस्में-          60×45

              खाद तथा उर्वरक

                फूल गोभी की फसल खेत से पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व खींचती है। 250 क्विंटल उपज देने वाली फसल 1 हेक्टेयर भूमि में लगभग 110 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम, फास्फोरस तथा 135 किलोग्राम पोटाश ले लेती है अतः फूल गोभी की बढ़िया उपज लेने के लिए खाद तथा उर्वरक दोनों ही डालनी चाहिए! फूल गोभी के लिए नाइट्रोजन की विशेष रुप से काफी मात्रा में जरूरत पड़ती है क्योंकि नाइट्रोजन की कमी से फूलों का आकार छोटा रह जाता है
                  खेत की तैयारी के समय रोपाई से 3-4 सप्ताह पहले 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद   के मिट्टी में अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए । उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच कर करनी चाहिए किसी कारणवश मिट्टी की जांच ना हो सके तो 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 7 किलोग्राम 5 किलोग्राम की दर से देना चाहिए 
                    नाइट्रोजन की मात्रा और फास्फोरस पोटाश की मात्रा को अंतिम रूप से फैला देना चाहिए  और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा को दो बार में रोपाई की 1 सप्ताह पहले और एक माह बाद तथा 10 से 15 किलोग्राम सुहागा से पहले खेत में मिला देना चाहिए क्योंकि फूल गोभी की फसल बोरान की कमी के लिए बहुत नाजुक फसल लगाने के बाद पौधों पर बोरान की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 0.3 प्रतिशत बोरेक्स के घोल का खड़ी फसल पर छिड़काव कर देना चाहिए

                        सिंचाई और जल निकास 

                        पहली सिंचाई पौध की रोपाई के तुरंत बाद की जाती है और दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 4 से 5 दिन बाद   करनी चाहिए बाद किसी चाहिए अगेती फसल में सप्ताह में एक बार और पछेती फसल में 10 से 15 दिन के अंदर पर करते हैं फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना बहुत ही आवश्यक है 
                          खेती किस माह  में  वर्षा होते रहने पर सिंचाई की आवश्यकता प्रारंभ में कुछ समय तक नहीं पड़ती केवल बाद में वर्षा ऋतु    समाप्त हो जाती है या लंबे समय तक वर्षा नहीं होती है तो सिंचाई करनी होती है वर्षा ऋतु में अगेती फसल में कभी भी खेत में वर्षा का फालतू पानी एकत्र नहीं होने देना चाहिए अन्यथा पौधे पीले पड़कर मर जाते है

                            खरपतवार नियंत्रण

                               खरपतवारों की रोकथाम के लिए TOK-E 25 दवा  का भी प्रयोग किया जा सकता है
                              5 लीटर दवा को 625 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद छिड़कने से 1 वर्षीय खरपतवार नहीं हो पाते हैं लगभग 40 से 45 दिन तक निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन बाद में जब इस दवा का प्रभाव समाप्त हो जाता है तो खरपतवार निकाल सकते हैं जिन्हें निराई करके निकालना चाहिए वैसलीन दवा 1 किलो  सक्रिय अवयव को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करके मिट्टी में मिलाने से खरपतवार नहीं उगते हैं


                              फूल को धूप से बचाना-                                 

                                फूलगोभी का सफेद  फूल प्राप्त करने के लिए एवं फूलों को सूर्य की रोशनी से बचाने के लिए पत्तों द्वारा ढकने की प्रक्रिया को "ब्लांचिंग "कहते हैं 
                                     फूल को धूप से बचाना अत्यंत आवश्यक है। तेज धूप और गर्मी के कारण फूल का रंग पीला पड़ जाता है ।और उसका बाजार भाव कम हो जाता है धूप से बचाने के लिए जब फूल निकलना प्रारंभ हो जाए तो पत्तियों को फूल के ऊपर समेटकर बांध देना चाहिए।यदि ऐसा करना संभव ना हो तो फूल गोभी के नीचे की दो पत्तियों को तोड़कर फूल के ऊपर रख देना चाहिए ताकि फूल पर धूप सीधे ना पढ़ सके। "फूलगोभी को 5 दिन से अधिक नहीं ढ़कना चाहिए।"

                                      रोग नियंत्रण -

                                              फूलगोभी की फसल में निम्नलिखित रोग लगते हैं-

                                        अर्ध पतन(Damping off)

                                        यह नर्सरी में लगने वाली मुख्य बीमारी है इससे पौधे की जड़ चढ़ जाती हैं बीमार पौधे भूमि की सतह से गल कर गिर जाते हैं। 
                                          यह रोग फफूद के द्वारा होता है इस भकूट द्वारा बीजपत्र आधार पर भूरे रंग के धब्बे पैदा होते हैं, जो जड़ तथा भूमि की सतह के निकट तने के निचले भाग पर पाए जाते हैं तीन भागों में सड़न हो जाने के बाद पौधे गिर जाते हैं और अंत में खत्म हो जाते है.       

                                            रोकथाम 

                                              1.नर्सरी को फॉर्मेल्डिहाइड (20 से 30 मिली प्रति लीटर पानी )से उपचारित करना चाहिए।

                                              2.बीज को कैप्टन या थायराम से  (2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज) से उपचारित करके बोना चाहिए।

                                              3. बुवाई से पहले नर्सरी को मिट्टी को 0.2% ब्रेसिकाल के घोल से सिंचित कर देना चाहिए।

                                              काला विगलन(Black rot)

                                              यह रोग जीवाणु के कारण होता है- इस रोग के कारण सबसे पहले पत्तियों के किनारों पर वी आकार की हर महीने मुरझाए हुए स्थान दिखाई पड़ते हैं जैसे जैसे रोग बढ़ता है पत्तियों की शिराओं का रंग काला या बुरा होने लगता है पूरी पत्ती का रंग पीला पड़ जाता है और वह मुरझा कर गिर जाती है पर ड्रिंक तथा शिराओं पर काले बिंदु दिखाई पड़ते हैं.
                                                रोकथाम

                                                  1.कम से कम 2 वर्ष तक सरसों कुल के फसलों को फसल चक्र में सम्मिलित नहीं करना चाहिए।


                                                  2.बीजों को बोने से पहले 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 30 मिनट के लिए गर्म पानी में से उपचारित करना चाहिए।


                                                  3.  फसल के मलबे को जला देना चाहिए ताकि इस पर पाए जाने वाले जीवाणु का विनाश हो सके.

                                                  पत्तियों का धब्बा रोग

                                                     यह रोग भी एक फफूद के द्वारा होता है- इस रोग के कारण पत्तियों पर बहुत से छोटे छोटे गोल तथा गहरे रंग के धब्बे बनते हैं इन धब्बों के केंद्रीय स्थान पर नीलापन लिए हुए खून की वृद्धि पाई जाती है इनमें बाद में चक्करदार रेखाएं बनने लगती हैं

                                                      रोकथाम
                                                      1.फसल को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए
                                                      2.फसल पर रोग के लक्षण दिखाई देते ही 2.5 किलोग्राम इंडोफिल एम 45 को 1000 लीटर पानी में  घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए

                                                      काला तार सदृश तना

                                                      यह फूल गोभी का नया रोग है जो कि सफ़ेद के कारण होता है- इस रोग के कारण रोगी फूलगोभी के पौधे का तना जमीन की सतह के पास तारकोल के समान काला पड़ जाता है

                                                        रोकथाम                           
                                                         इस रोग की रोकथाम पौधे की रोपाई के बाद 10 दिन के अंदर से 0.2 प्रतिशत ब्रेसीकाल के गोल से क्यारियों को सिंचित करके किया जा सकता है

                                                          काली मेखला 

                                                            यह रोग भी फफूंदी के कारण होता है- इस रोग के लक्षण पहले नर्सरी में ही बुवाई के 15 से 20 दिन पहले दिखाई देते हैं

                                                             पत्तियों पर धब्बे बनते हैं जिनके बीच का भाग राख की तरह धूसर रंग का हो जाता है तनु पर धब्बे पंक्तिबद्ध होते हैं

                                                                यह नीललोहित रंग के किनारों से घिरे रहते हैं रोगी पौधे जल्दी नहीं गिरते परंतु जब पौधों के शीर्ष( फूल) बड़े हो जाते हैं तो उनके भार के कारण रोग ग्रस्त तना के कमजोर क्षेत्र से पौधे गिर जाते है
                                                                रोकथाम
                                                                  1.बीज को बोने से पहले गर्म पानी में 50 डिग्री सेल्सियस 30 मिनट  तक उपचारित करना चाहिए 

                                                                  2. तीन  वर्ष का फसल चक्र अपनाना चाहिए जिसमें यथासंभव सरसों कुल की फसल सम्मिलित नहीं करनी चाहिए

                                                                  लालिमा रोग

                                                                    यह रोग बोरान तत्व की कमी के कारण होता है  फूल के बीचो-बीच और डंठल व पत्तियों पर पीले धब्बे बनते हैं फूल कत्थई रंग का दिखाई देने लगता है रोगी पौधों की बढ़वार रुक जाती है और डंठल खोखले से रह जाते हैं

                                                                      रोकथाम
                                                                      इस रोग की रोकथाम के लिए नर्सरी में पौधों पर 0.3% सुहागा के घोल का छिड़काव करें -तथा रोपाई के बाद मुख्य खेत में 0.5% बोरेक्स के घोल का छिड़का करें

                                                                        कीट नियंत्रण

                                                                           फूलगोभी के मुख्य हानिकारक कीट अग्रलिखित हैं-

                                                                          आरा मक्खी 

                                                                            इस कीट की सुंडी काले रंग की लगभग 20 मिली मीटर लंबी होती है इसके शरीर के ऊपर 5 हानियां होती हैं यह सोनिया मुलायम पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं 

                                                                              रोकथाम 

                                                                                यदि फसल थोड़े क्षेत्र में उगाई गई हो तो सुंडियो को हाथ से पकड़ कर भी नष्ट किया जा सकता है
                                                                                   फसल पर 10% सेविन धूल का30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा एक लीटर मैलाथियान 50 E.C  को 625 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए

                                                                                     माहू 

                                                                                      यह पीले हरे रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं जो पत्तियों की निचली सतह पर काफी संख्या में देखे जा सकते हैं इस कीट का आक्रमण दिसंबर से मार्च तक होता है इनकी आक्रमण के कारण फसल कमजोर हो जाती हैं व पत्ते थोड़े सिकुड़ जाते हैं जब आकाश में बादल छाए होते हैं और मौसम नम होता है तो इस कीट का प्रकोप बढ़ जाता है

                                                                                        रोकथाम

                                                                                           सायपेर्मेथ्रिन का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए
                                                                                             फसल की प्रारंभिक अवस्था में जबकि फूल न आये हो नुवान का 0.0 5% घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है

                                                                                              डायमंड बैक मोथ  

                                                                                              1. इस कीट की सुंडी पत्तियों में छेद करके कहती है जिससे पत्तियो में केवल नसे ही शेष रह जाती है यदि पत्तियों को धिरे धिरे हिलाया जाए तो छोटी छोटी हरी स्लेटी रंग की सुन्डिया नीचे गिर जाती है इसका आक्रमण अगस्त से दिसम्बर तक होता है

                                                                                              रोकथाम

                                                                                              1. मैलाथियान 5 .0 धूल का 30 और 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करना चाहिए

                                                                                                 यह किट अक्सर पौधों को छोटी अवस्था में ही नुकसान पहुंचाता है ।यह बीटल लगभग 2 मिली मीटर लंबे नीले हरे रंग के होते हैं। जो एक पौधे से पूरा कर दूसरे पौधे पर चले जाते हैं यह मुलायम पत्तियों को काट कर उन्हें छेद बनाते हैं और कभी-कभी पूरी  पत्तियों को ही खत्म कर देते हैं।

                                                                                                   रोकथाम

                                                                                                    सेविन10 प्रतिशत धूल को 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करना चाहिए ।अथवा 0.15%सायपेर्मेथ्रिन  घोल  का छिड़काव करना चाहिए।

                                                                                                      पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट

                                                                                                        यह हरे रंग की चुनरी होती है- जो पत्तियों में जाला बुनकर अंदर से उसे खाकर क्षति पहुंचाती है कभी-कभी यह किस फसल को काफी हानि पहुंचा देती है.

                                                                                                        रोकथाम 

                                                                                                          इस कीट की रोकथाम के लिए 0. 15% सुमीसीडीन के घोल का छिड़काव करें अथवा नुवान का 0.05%(0.5 mli लीटर पानी के घोल का छिड़काव करना चाहिए

                                                                                                          बंदगोभी की सुंडी

                                                                                                            इसके बच्चे पत्तियों से भोजन प्राप्त करते हैं- जब बड़े हो जाते हैं तो यह सुंडियो के रूप में फेल कर पत्तियों को खा जाते हैं और पत्तियों को छलनी कर देते हैं 

                                                                                                            रोकथाम 

                                                                                                            इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50% घुलनशील पाउडर के 0.1% के घोल का फसल पर छिड़काव करना चाहिए






                                                                                                            click here -जानिए मशरूम की खेती कैसे करे-















                                                                                                            ⤷(2).Cliek here-कृषि सामान्य ज्ञान-



























                                                                                                                                  

                                                                                                            Musroom ki kheti, musroom cultivation

                                                                                                                                                              मशरूम की खेती

                                                                                                                                                         (Musroom Cultivation )



                                                                                                            भारत में मशरुम की खेती के बारे में जानकारी-


                                                                                                            मशरुम की खेती का प्रचलन भारत में करीब 200 सालों से है। हालांकि भारत में इसकी व्यावसायिक खेती की शुरुआत हाल के वर्षों में ही हुई है। नियंत्रित वातावरण में मशरुम की पैदावार करना हाल के दिनों का उभरता ट्रेंड है। इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है और यह आयात निर्देशित एक व्यवसाय का रुप ले चुका है। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और  राजस्थान (शीतकालीन महीनों में) जैसे राज्यों में भी मशरुम की खेती की जा रही है। जबकि इससे पहले इसकी खेती सिर्फ हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पहाड़ी इलाकों तक ही सीमित थी। मशरुम प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स, फॉलिक एसिड का बेहतरीन श्रोत है। यह रक्तहीनता से पीड़ित रोगी के लिए जरूरी आयरन का अच्छा श्रोत है।

                                                                                                            मशरुम तीन तरह के होते हैं- 

                                                                                                            1.बटन मशरुम
                                                                                                            2.ढिंगरी (घोंघा)
                                                                                                            3.पुआल मशरुम (सभी प्रकार के

                                                                                                            बटन मशरुम सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। बड़े पैमाने पर खेती के अलावे मशरुम की खेती छोटे स्तर पर एक झोपड़ी में की जा सकती है।


                                                                                                            उत्पादक-
                                                                                                            भारत में मुख्यतौर पर दो तरह के मशरुम उत्पादक पाए जाते हैं। पहला, मौसमी उत्पादक और दूसरा, पूरे साल उत्पादन करने वाले। दोनों तरह के उत्पादक घरेलू बाजार और निर्यात के लिए सफेद बटन मशरुम का उत्पादन करते हैं। मौसमी बटन मशरुम उत्पादक समशीतोष्ण क्षेत्रों तक ही सीमित रहते हैं जैसे कि, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाके,तमिलनाडु के पहाड़ी इलाके और पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाके, जहां उत्पादक पूरे साल बटन मशरुम की दो से तीन फसलें पैदा करते हैं। मौसमी उत्पादकों में भारत के पश्चिमोत्तर मैदानी इलाके के उत्पादक भी शामिल हैं जो बटन मशरुम की एक शीतकालीन फसल पैदा करते हैं और ताजा-ताजा बेच देते हैं।

                                                                                                            मशरुम बाजार की संभावनाएं-       
                                                                                                            मशरुम के मुख्य उपभोक्ता चाइनीज फूड रेस्त्रां, होटल, क्लब और घर-बार होते हैं। बड़े शहरों में मशरुम को सब्जियों की दुकानों के जरिए बेचा जाता है। घरेलू और निर्यात का बढ़ता बाजार और इसका स्वाद और खाने की कीमत मशरुम की खेती के लिए अच्छी और व्यापक संभावनाएं पैदा करती है

                                                                                                            मशरुम की खेती का तकनीकि ब्योरा या विवरण-

                                                                                                            उत्पादन की प्रक्रिया-
                                                                                                            (क) बीज की तैयारी (मशरुम का बीज): मशरुम का बीज बाजारों में तैयार मिलता है। अगर इच्छा व्यक्त की गई तो, वैसा ही तैयार किया जा सकता है और व्यावसायिक तौर पर बेचा जा सकता है।

                                                                                                            कम्पोस्ट की तैयारी:
                                                                                                            कम्पोस्ट के निर्माण के लिए कई तरह के मिश्रण होते हैं और कोई भी जो उस उद्यम या उद्योग के लिए अनुकूल बैठता है उसका चुनाव कर सकते हैं। इसे गेहूं और पुआल का इस्तेमाल करते हुए तैयार किया जाता है जिसमे कई तरह के पोषक तत्व मिले होते हैं। कृत्रिम कम्पोस्ट में गेहूं की पुआल में जैविक और अजैविक और नाइट्रोजन पोषक तत्व होते हैं। जैविक कम्पोस्ट में घोड़े की लीद मिलाई जाती है। कम्पोस्ट का निर्माण लंबे या छोटे कम्पोस्ट पद्धति से किया जा सकता है। सिर्फ उन्ही के पास जिनके पास पाश्चरीकृत करने की सुविधा है वो शॉर्ट कट पद्धति अपना सकते हैं। लंबी पद्धति में 28 दिनों की अवधि के दौरान एक निश्चित अंतराल के बाद 7 से 8 बार उलटने-पलटने की जरूरत होती है। अच्छा कम्पोस्ट गहरे-भूरे रंग का, अमोनिया मुक्त, हल्की चिकनाहट और 65-70 फीसदी नमी युक्त होता है।

                                                                                                            स्प्यू या निकालना (कम्पोस्ट को बीज के साथ मिलाना): कम्पोस्ट के साथ मशरुम के बीज को मिलाने की निम्न तीन प्रक्रियाएं हैं-
                                                                                                            (क) परत स्प्यू- कम्पोस्ट एक समान परत में बंटा होता है और बीज प्रत्येक परत में फैली होती है। बीज का परिणाम अलग-अलग परत में होता है।

                                                                                                            (ख) सतह स्प्यू- कम्पोस्ट का 3 से 5 सेमी फिर से मिला दिया जाता है, बीज को कम्पोस्ट के साथ फैलाकर और ढंक दिया जाता है।

                                                                                                            (ग) खुला या सीधा स्प्यू- बीज को कम्पोस्ट के साथ मिला दिया जाता है और दबा दिया जाता है। एक बोतल बीज 35 किलोग्राम कम्पोस्ट के लिए पर्याप्त होता है जो कि 0.75 वर्ग मीटर क्षेत्र (करीब दो ट्रे) में फैला होता है। इसलिए, बीज का कम्पोस्ट से अनुपात 0.5 फीसदी है। फसल के कमरे में ट्रे को कतार में रखा जाता है और उसे अखबार के साथ ढंक दिया जाता है। दो फीसदी फॉर्मलीन का उसके उपर छिड़काव कर दिया जाता है। वांछित कमरे का तापमान 95 फीसदी आर्द्रता के साथ करीब 18 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।

                                                                                                            आवरण- बीजयुक्त कम्पोस्ट विसंक्रमित सूखी घास, खड़िया या सफेदी पाउडर आदि से ढंक दिया जाता है।


                                                                                                            मशरुम की पैदावारः उपर वर्णित आर्द्रता और तापमान के अलावा कमरे का उचित वायु-संचार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

                                                                                                            फसलः-
                                                                                                            मशरुम 30-35 दिनों में नजर आने लगता है। यह कुकुरमुत्ता फल वाला हिस्सा विकसित होने लगता है इसे तब काट लिया जाता है जब इसका बटन कड़ा होकर बंद हो जाता है। 8 से 10 सप्ताह के

                                                                                                            एक फसल चक्र के दौरान प्रति वर्गमीटर में 10 किलोग्राम मशरुम पैदा होता है। काटे गए मशरुम को बाजार में सप्लाई के लिए पैक किया जा सकता है।

                                                                                                            खास बातें
                                                                                                            मशरुम की खेती कम लागत और कम मेहनत में बहुत अच्छा मुनाफा देती है।


                                                                                                            टिकाऊ खेती, नीम का महत्व, वर्मी कंपोस्ट, मशरूम की खेती, कृषि वानिकी, कृषि जैव प्रौद्योगिकी और अनुवांशिक इंजीनियरिंग

                                                                                                                                     21 वी सदी हेतु में कृषि में नए आयाम

                                                                                                            (टिकाऊ खेती, नीम का महत्व, वर्मी कंपोस्ट, मशरूम की खेती, कृषि वानिकी, कृषि जैव प्रौद्योगिकी और अनुवांशिक इंजीनियरिंग)

                                                                                                                                  
                                                                                                            1.सम गतिशील( टिकाऊ) खेती
                                                                                                               (Sutainable Agriculture )   

                                                                                                            टिकाऊ खेती की परिभाषा

                                                                                                               1.कृषि .एवं प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करना ताकि निरंतर फसल उत्पादन में वृद्धि से मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो साथ ही पर्यावरण सुधरे और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य में सुरक्षित रख सके टिकाऊ खेती कही जाती है(खाद्य एवं कृषि संगठन 1993) 
                                                                                                             2."बदलते पर्यावरण अर्थार्थ धरती के तापक्रम में वृद्धि समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी एवं ओजोन की परत में क्षति आदि नई उत्पन्न विषमताओं में कृषि को टिकाऊपन देने के साथ-साथ दुनिया की बढ़ती आबादी को अन्न खिलाने के लिए उत्पादकता के स्तर पर क्रमागत वृद्धि करना ही टिकाऊ खेती है"(प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन 1993)

                                                                                                                                       21 वी सदी में टिकाऊ खेती हेतु सुझाव
                                                                                                                     (Suggestions for Sustainable Agriculture in 21st Century )


                                                                                                                 निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
                                                                                                            • फसल पद्धतियों के अपनाने के साथ -साथ एग्री -बिजनेस आधारित खेती अर्थात फार्मिंग सिस्टम की सोच अपनानी होगी जिसमें फसल+ डेयरी/ पशुपालन/ बकरी/ मत्स्य/ मुर्गी/ बत्तख/ कछुआ/ तीतर/ बटेर पालन, बागवानी ,औषधीय एवं सुगंधित पौधे, फूल, फल, सब्जियां, मशरूम, रेशम आदि ताकि आमदनी बढ़े!

                                                                                                            • प्रमुख स्रोतों -ऊर्जा, जल, भूमि एवं मानव शक्ति (श्रम) को सुव्यवस्थित ढंग से संगठित करना होगा !
                                                                                                            • परंपरागत खेती को छोड़कर नई तकनीक से खेती करनी होगी कृषकों को शिक्षित करना होगा तथा खेती में शिक्षित युवा पीढ़ी को लाना होगा ITK (किसान अनुभव) एवं आधुनिक खेती को समन्वित कर खेती की जाए !
                                                                                                            •  कार्बनिक खेती, जैव उर्वरक, जैव प्रौद्योगिकी आदि पर विशेष जोर दिया जाए !
                                                                                                            •  समन्वित प्रबंधन उर्वरक कीट व्याधि, खरपतवार, जल प्रबंधन पर जोर दिया जाए  ! 

                                                                                                                                                2.नीम का कृषि में महत्व
                                                                                                                                      (Important of Neem in Agricuture)

                                                                                                            महत्व-खेती में उर्वरको एवं रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से हमें सोचने के लिए यह विवश  कर दिया है कि निश्चय ही यह रसायन पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं उदाहरण के तौर पर आज सब्जियों (बैगन, टमाटर, मिर्च, आलू आदि), फलों (केला,आम) कपास, गन्ना, आदि  में इन रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है सोचो कि किस राह पर जाएगी यह खेती यदि कृषि रसायनों का उपयोग ऐसे ही बढ़ता रहा तो अगली पीढ़ी तक भूमि के घटते उपजाऊपन की समस्या तो होगी ही साथ ही मानव जीवन भी असुरक्षित हो जाएगा अतः अब आवश्यक है कार्बनिक- खेती की,जिसमें नीम के उत्पाद का भूमि एवं फसलों में प्रयोग का, कीड़े मकोड़ों को मारने की !






                                                                                                            •  नीम की खेती  में महत्ता -मुख्य बातें 

                                                                                                            1. बायो पेस्टिसाइड, एंटीफीडेंट ओविसाइडल कीटनाशी.
                                                                                                            2. खेती में रसायनों के अंधाधुंध उपयोग का विकल्प नीम के उत्पाद.
                                                                                                            3. खेती में नीमैक्स जैविक खाद 125 -150 किग्रा /हेक्टेयर धान्य फसलों हेतु प्रयोग.
                                                                                                            4. मानव में त्वचा रोग कैंसर एक्टिवेटेड कार्बन तत्व से पीलिया बुखार में लाभदायक एवं पर्यावरण के लिए उपयोगी.
                                                                                                            5. यूरिया के नुकसान को रोकने हेतु  नीम परत चढ़ा यूरिया नीमरैली का प्रयोग आदि. 



                                                                                                                                                    3. वर्मी कंपोस्ट
                                                                                                                                                 ( Vermi Compost)

                                                                                                            वर्मी कंपोस्ट-वर्मी कंपोस्ट को Vermiculture  Earthworm rearing  (केंचुआ पालन) भी कहा जाता है, गोबर ,सूखे एवं हरे पत्तों घास-फूस, धान का पुआल, मक्का, बाजरा की कड़वी, खेतों के अवशेष, डेरी, कुक्कुट, बेस्ट सिटी गरबे इत्यादि खाकर केंचुआ द्वारा प्राप्त  मल से तैयार ही खाद "वर्मी कंपोस्ट" कहलाती है यहां हर प्रकार के पेड़ पौधों पर वृक्षों फल वृक्षों सब्जियों फसलों के लिए पूर्ण रूप से प्राकृतिक संपूर्ण एवं संतुलित आहार है  इससे बेरोजगार युवकों ,गृहणियों एवं भावी पीढ़ी को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की भी समस्या कुछ हद तक सुलझ सकती है केंचुआ क मल तथा वर्मी वास भी उपयोगी है  वर्मी वाश में 7 गुना पानी मिलाकर फसलों में उपयोगी रहता है और गोमूत्र में मिलाकर 10 गुने पानी से छिड़कने लाभ होता है !




                                                                                                            वर्मी कंपोस्ट /वर्मी कल्चर मुख्य- बिंदु
                                                                                                            • Vermi -compost -केंचुआ द्वारा घर/ फार्म के Wastes को खाकर निकलने वाला मल एवं वर्मी वाश.
                                                                                                            • फसलों सब्जियों फल वृक्षों के लिए पोषण संतुलित खाद.
                                                                                                            • केंचुए- किसान के मित्र, प्राकृतिक का हलवाहा  पृथ्वी की आंत , मृदा उर्वरता का बैरोमीटर.
                                                                                                            • भूमि में N,P,K Ca, Mg तत्वों को बढ़ाना (भूमि उर्वर करना)C.E.C. एवं Structureमें सुधार.


                                                                                                                                                  केंचुए की महत्त्व
                                                                                                                                          ( Importance of earthworms)

                                                                                                            • प्रकृति का हलवाहा-(Nature ploughman).
                                                                                                            • Intestines of the earth - अरस्तु (Aristotle).
                                                                                                            • नील घाटी की भूमि को उर्वर(Fertile) करने में कछुओं की State Secret संज्ञा दी जाती है-An Ancient Egyptians.
                                                                                                            •  Barometer of Soil fertility -Charles Darw  in -Charles Darw in .
                                                                                                            • बगैर केंचुए के पृथ्वी की वनस्पति लुप्त हो सकती है.
                                                                                                            •  किसानों का सच्चा मित्र.
                                                                                                            • केंचुए का बीट मल फास्फोरस का प्रमुख स्रोत जिसे पक्षी अपने घोंसले में ले जाकर दीमक के रूप में रात्रि में चमक प्रयोग करते हैं जैसे हवाई जहाज का भी रात्रि में चमकना.













                                                                                                            केला की खेती कैसे करे How to cultivate banana

                                                                                                             केला की खेती कैसे करे How to cultivate banana

                                                                                                                                                       
                                                                                                             केला की खेती कैसे करे

                                                                                                            केले की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए

                                                                                                             केला एक गर्म प्रदेश एक  फल है ,या गर्म और तर जलवायु चाहता है और अधिकतर नम जलवायु में फलता -फूलता है हमारे प्रदेश में केले को मुख्यतः गृह वाटिकाओं के किनारे लगाने का चलन है लेकिन देश के दक्षिणी भाग में केले के बड़े-बड़े बाग लगाए जाते हैं जहां केले को व्यापारिक स्तर पर लगाया जाता है अकेला पाले को सहन करने की क्षमता रखता है। लेकिन तेज हवाओं से पौधों को हानि होती है अकेला विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जाता है हमारे देश में समुद्र की सतह से 1000 मीटर ऊंचे स्थानों तक में केले की खेती की जाती है लेकिन जिन स्थानों में तेज धूप और अधिक वर्षा होती है वहां अकेला अच्छी उपज देता है। 

                                                                                                            केले की उन्नत किस्मे

                                                                                                            उत्तर प्रदेश में लगभग मालभोग, अमृत सागर, केला हरी  छाल, बसराई ड्वार्फ , बलिया हजारा,अलपान केले की किस्में उगाई जाती हैं। 

                                                                                                            भूमि की तैयारी 

                                                                                                            गहरी उपजाऊ अधिक पानी धारण करने की शक्ति रखने वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है तालाब के किनारे भारी तथा नाम भूमि में भी अकेला अच्छी उपज देता है लेकिन साधारण केला किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है यदि इसमें गोबर का खाद पर्याप्त मात्रा में देने के लिए उपलब्ध हो तथा साथ ही साथ पानी का अच्छा निकास हो। 

                                                                                                            खाद तथा उर्वरक

                                                                                                            केले के पेड़ पौधों के लिए प्रतिवर्ष 250 ग्राम नाइट्रोजन 100 किलोग्राम फास्फोरस अम्ल तथा 200 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है नाइट्रोजन चार बराबर मात्रा में अगस्त-सितंबर मार्च-अप्रैल में दें अमल की पूरी मात्रा पौधों की नर्सरी लगाने के 2 या 3 दिन पहले गड्ढे में मिला दे पोटाश की आधी मात्रा नाइट्रोजन के साथ अगस्त में तथा शेष आधी मात्रा अप्रैल में दें केले की अधिकतम उपज लेने के लिए 18 किलोग्राम गोबर की खाद प्रतिबाधा लगाते समय 2.250 किग्रा अंडे की खाली टॉप ड्रेसिंग द्वारा तीन बार में दी जानी चाहिए। 

                                                                                                            केले  के पौध लगाने की विधि

                                                                                                            केला अधोभूस्तरी अर्थात सकर द्वारा प्रवर्धन  किया जाता है यह दो प्रकार के होते हैं तलवार सकर  और पानी वाले शकर।  तलवार शकर की पुत्तियां कम चौड़ी तलवार के आकार की होती हैं। और नए पौधे तैयार करने के लिए इनको सबसे अच्छा माना जाता है, पानी वाले शकर की पत्तियां चौड़ी होती हैं और पौधे भी कमजोर होते हैं अधोभूस्तरी ऐसे पौधों से लेना चाहिए

                                                                                                             जो ओजस्वी और परिपक्वव  हो,  और किसी प्रकार के रोग और कीड़े से प्रभावित ना हो 3 से 4 महीने पुराने शकर प्रवर्धन के लिए बहुत अच्छे होते हैं केले के प्रकंद से भी नई पौध तैयार हो सकते हैं बहुत अधिक पौधे जल्द तैयार करने के लिए पूरा प्रकंद यह इस के टुकड़े काटकर प्रयोग करना चाहिए यह ध्यान रहे कि प्रत्येक भाग में एक कली हो जहां से नया प्ररोह निकल सके इन से पौधा बनने में अधिक समय अवश्य लगेगा परंतु पैदावार पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा मात्र पौधों की जड़ों से काटकर निकालते हैं साधारणता 7 से 90 सेंटीमीटर की ऊंचाई की छुट्टियां उपयुक्त होती है। 

                                                                                                            अधोभूस्तरी या पुत्तियो  का रोपण 

                                                                                                            केले के पौधे खेत में वर्षा ऋतु में जुलाई से लेकर सितंबर तक रोक पाए जाते हैं केले गड्ढे अथवा नालियों में बह जाते हैं अकेला बोने के लिए मई में 1 /2  मीटर व्यास के 1 /2  मीटर गहरे गड्ढे 2 *1. 5  मीटर की दूरी पर खाद खोज लेना चाहिए और उन्हें गोबर की खाद में मिट्टी मिलाकर जुलाई के प्रारंभ में भर देना चाहिए यदि नालियों में अकेला दो ना हो तो 50 सेमी चौड़े और 50 सेंटीमीटर गहरी नालियों 2 मीटर की दूरी पर और लेनी चाहिए इन में प्रति हेक्टेयर 200 कुंटल गोबर की खाद डाल देनी चाहिए

                                                                                                             उसके बाद इन गड्ढों में 1.5 मीटर की दूरी पर नालियों के बीच में केले की पौध को बोल देना चाहिए रोपाई से पहले प्रत्येक पौधों को तेज और जड़ से काट दीजिए और भूमिगत तने के कटे हुए भाग को तेरे साथ 0.25 प्रतिशत घोल में 1 मिनट तक दुआएं फरवरी-मार्च का समय ही खेत में केला रोकने के लिए सही रहता है लेकिन यह उन स्थानों में संभव है जहां पर पर्याप्त सुविधा हो। 

                                                                                                            केले के पौधे की सिंचाई कैसे करें 

                                                                                                            केले में सिंचाई की काफी आवश्यकता होती है।  वर्षा ऋतु के उपरांत जाड़े की ऋतु में  25 से 30 दिन के अंतर से केले के खेत में सिंचाई करते रहना चाहिए। इस ऋतु में सिंचाई से केले में पाले द्वारा हानि का भय नहीं रहता है ग्रीष्म ऋतु में अपेक्षाकृत जल्दी-जल्दी सिंचाई की आवश्यकता होती है।  आवश्यकता अनुसार 20 से 15 दिन के अंतर से केले की फसल की सिंचाई की जाती रहनी चाहिए वर्ष में यदि फसल में अधिक विलंब अर्थ देरी हो जाए तो फसल में सिंचाई कर देनी चाहिए असल में जिस खेत में किया गया हूं उसमें भूमि को कभी सूखने देना। 

                                                                                                            केले के पौधे में फूल और फल लगना 

                                                                                                            दक्षिण तथा पश्चिम भारत में केले की अगेती किस्में रोपाई के लगभग 7 महीने बाद फूल लगने लगता है। अकेला फूलने के अगले 7 महीने के अंदर फलियां जो है पक कर तैयार हो जाती हैं इस प्रकार भुवन किशन की पहली फसल के लोगों की रोपाई के लगभग 14 महीने के बाद उपलब्ध हो जाती है। और दूसरी फसल 21 से 24 महीने के बीच में तैयार हो जाती है जिस पेड़ पर एक बार फल लग जाता है उस पेड़ पर दोबारा फल नहीं लगता अतः फल तोड़ने के बाद उस पेड़ को भूमि सतह से काट देना चाहिए तन्हा काट देने से बगल की पंक्तियां अर्थात पौधे जल्दी विकसित होते हैं किंतु एक तने को एक बार में नहीं काटना चाहिए। 

                                                                                                             क्योंकि ऐसा करने से बगल वाले पौधे हानिकारक प्रभाव पड़ेगा अतः फल की भारी काटने के बाद लगभग 20 दिन के बाद ही स्तनों को 2 बार में काटना चाहिए केले का फूल लाल रंग का होता है इस फूल में नर और मादा दोनों ही भाग पाए जाते हैं हमारे प्रदेश में हर साल का केला बहुत पसंद किया जाता है यह केला बस राई किसमें से ही है इसके लिए कि पौधे को लगाने के लगभग 10 से 12 महीने बाद उसमें फूल निकलता है और उसके लगभग 4 महीने बाद फल काटने के लिए योग्य हो जाता है। 

                                                                                                            फसल की कटाई 

                                                                                                            केला  पेड़ पर गुच्छों  के रूप में निकलते हैं केले के गुच्छे को ही फसल की कटाई केले के पेड़ पर गुरु के रूप में निकलते हैं केले के गुच्छे को ही गैर कहते हैं गैर को इस प्रकार काटा जाए जाता है कि घर के लगभग 30 सेमी डंठल भी कट जाए 

                                                                                                            उपज 

                                                                                                            केले की एक पेड़ से केवल एक ही घारी  मिलती है किस प्रकार एक हेक्टेयर में लगभग 3333 घारी निकलती हैं एक घारी में 50 से लेकर सौ केले  तक होती हैं इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 250 कुंटल के लाभ प्राप्त होता है,  घर में 50 से लेकर सौ तालियां तक होती हैं इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 250 कुंटल के लाभ प्राप्त होता है। 
                                                                                                                                                                 


                                                                                                            ICAR ALL AWARD



                                                                                                            भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पुरस्कार(वर्ष 2013)



                                                                                                            भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पुरस्कार(वर्ष 2013)


                                                                                                            •  सरदार पटेल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सर्वश्रेष्ठ संस्थान पुरस्कार 
                                                                                                            • ICAR AWARD FOR DIVERSIFIED AGRICULTURE (TOW) 
                                                                                                                   (1.)  जगजीवन राम किसान पुरस्कार

                                                                                                                   (2.)जगजीवन राम किसान पुरस्कार

                                                                                                            • जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार (स्नाकोत्तर उत्कृष्ट कृषि अनुसंधान के लिए)(Biotecnology/Crop  Imp./Crop Protcion/Nrm(agro foresty)  Horti./ Engg./ Ani production/Fisheries/  social  science(13 Field) 
                                                                                                            •  पंजाबराव देशमुख कृषि महिला वैज्ञानिक पुरस्कार
                                                                                                            • बकाया एआईसीआरपी परियोजना पुरस्कार
                                                                                                            • शुष्क भूमि कृषि में अनुसंधान अनुप्रयोगों के लिए वसंतराव नाइक पुरस्कार।
                                                                                                            • स्वामी सहजन सरस्वती विस्तार वैज्ञानिक पुरस्कार
                                                                                                            • कृषि में जौहर नीलिस के लिए चौधरी चरण सिंह पुरस्कार
                                                                                                            • Bharat Ratna Dr.c. Subramanian Award  for Outstanding Teachers.
                                                                                                            • Rafi Ahemad Kidwai Award.  (2013) For Agri Research .
                                                                                                            • Lal bahadur Shastri Young scientist Award.
                                                                                                            • डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार तकनीकी -कृषि पर पुस्तक. हिंदी  लेखन पर(Fields - crop sci/ horti /anim.Sci. (Fisheries)

                                                                                                            • फखरुद्दीन अली अहमद पुरस्कार -आदिवासी क्षेत्र में उत्कृष्ट कृषि अनुसंधान हेतु(Agri .Sci./ Animal.Sci )
                                                                                                            •  NASI-ICAR -Award for innovation  and Research on From Implements.

                                                                                                            • ARIC (Agricultural Research information  center) Electronic publication 

                                                                                                            1.कृषि अनुसंधान सूचना केंद्र(ARIC) द्वारा CD तैयार की जा चुकी है !
                                                                                                            • Inventory of Indigenous technical Knowledge in Agriculture - document.1,2 and 2(supplement1).
                                                                                                            • Validation of indigenous Technica knowledge (ITK) Document 3.
                                                                                                            • NARD  (National Agriculture Research Data Base) CD (2002 -03)Covers abstarct of articles published in Agricultural Periodicales  in india.
                                                                                                            • Indian Forming CD (1995-2000)- covres full text Articles published during 1995-2000.
                                                                                                            • Indian Horticulture CD(1991-2000) -covers published during 1991-2000. 

                                                                                                            • विभिन्न कृषि संबंधित विभागों की वेबसाइट एवं ईमेल


                                                                                                            • ICAR(भारत सरकार )-www.icar.org.in
                                                                                                            • IASRI-Design Resource Server -www.iasri.nic.in
                                                                                                            • Dett.og Agric .andCoorpertion (minister of Agric., GOI) -www.agricoop.nic.in
                                                                                                            • पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (भारत सरकार)

                                                                                                                      Website :http://envfor.nic.in
                                                                                                                       E-mail :mef@menf.delhi.nic.in

                                                                                                            • खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय (भारत सरकार)


                                                                                                                     website:http://www.mofpi.nic.in
                                                                                                                      E-mail: mofpi@hub.nic.in

                                                                                                            • Deptt.of A.H Dairying and Fisheries(GOI)-


                                                                                                                         Website:http://dadf.gov.in



                                                                                                            AGRICULTURE ICAR,DRR,FULL FORM

                                                                                                                                             



                                                                                                            •        AGRICULTURE ALL FULL FOR


                                                                                                                   (1.)(AGRICULTURE SCIENCE )
                                                                                                            1. DOR-       डायरेक्टरेट ऑफ आयल रिसर्च सीड्स रिसर्च
                                                                                                            2. DRR-       डायरेक्टरेट ऑफ राइस रिसर्च 
                                                                                                            3. DWR-      डायरेक्टरेट ऑफ मेज विल रिसर्च 
                                                                                                            4. PDM-       प्रोजेक्ट डायरेक्टरेट ऑफ मेज  
                                                                                                            5. PDS-        प्रोजेक्ट डायरेक्टरेट ऑफ सोयाबीन रिसर्च
                                                                                                            6. DSR-       डायरेक्टरेट ऑफ सीड रिसर्च    
                                                                                                            7. DMR-      डायरेक्टरेट ऑफ मास्टर रिसर्च  
                                                                                                            8. PDOGR-  डायरेक्टरेट आन ओनियन एंड गर्लिक  रिसर्च 
                                                                                                            9. DGNR-     डायरेक्टरेट ऑफ ग्राउंड नट रिसर्च
                                                                                                            10. DIPA-       डायरेक्टरेट ऑफ इनफार्मेशन एंड पब्लिकेशंस ऑफ एग्रीकल्चर 
                                                                                                            11. DOMR-    डायरेक्टरेट ऑफ आयल पाम रिसर्च 
                                                                                                            12. DSR-         डायरेक्टरेट ऑफ सोरघम रिसर्च 
                                                                                                            13. DWSR-     डायरेक्टरेट ऑफ बीड साइंस रिसर्च 
                                                                                                            14. DWM-       डायरेक्टरेट ऑफ वाटर मैनेजमेंट 
                                                                                                            15. DCR-         डायरेक्टरेट ऑफ केशु रिसर्च 
                                                                                                            16. DFR-        डायरेक्टरेट ऑफ फ्लोरीकल्चर  रिसर्च  
                                                                                                            17. DMAPR-   डायरेक्टरेट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट रिसर्च
                                                                                                            18. PDMR-       प्रोजेक्ट डायरेक्टरेट ऑफ मशरूम रिसर्च 
                                                                                                            19.  DKMA-     डायरेक्टरेट ऑफ नॉलेज मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर


                                                                                                                      (2.) ANIMAL SCIENCE
                                                                                                            1. PDCR-            प्रोजेक्ट  डायरेक्टरेट ऑन कैटल रिसर्च
                                                                                                            2. PDPR-            डायरेक्टरेट ऑफ पोल्ट्री रिसर्च
                                                                                                            3. PDADMS-      प्रोजेक्ट डायरेक्टरेट ऑन एनिमल डिजीज मॉनिटरिंग एंड सर्विलांस 
                                                                                                            4. PDFMD-         प्रोजेक्ट डायरेक्ट डायरेक्ट रेट ऑन फुट एंड माउथ डिजीज
                                                                                                            5. DCWER-        डायरेक्टरेट ऑफ कोल्ड वाटर फिशरीज रिसर्च

                                                                                                            •      राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान केंद्र (NATIONAL AGRICULTURE INSTITUTE/CENTER)  

                                                                                                            1. NAARM-       नेशनल एकेडमी फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च एंड मैनेजमेंट
                                                                                                            2. NBAGR-        नेशनल ब्यूरो ऑफ एनीमल जेनेटिक रिसोर्सेज
                                                                                                            3. NBDC-          नेशनल बायो फ़र्टिलाइज़र डेवलपमेंट सेंटर   
                                                                                                            4. NBFGR-        नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज 
                                                                                                            5. NBPGR-        नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज 
                                                                                                            6. NBRI-           नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट
                                                                                                            7. NBSSLP-      नेशनल ब्यूरो ऑफ सोशल सर्वे एंड लैंड यूज़ प्लानिंग
                                                                                                            8. NCAEPR-     नेशनल सेंटर ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च 
                                                                                                            9. NDRI-           नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट
                                                                                                            10. NIAG-           नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एनिमल्स जेनेटिक्स
                                                                                                            11. NIN-              नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन
                                                                                                            12. NIRD-            नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रूलर डेवलपमेंट
                                                                                                            13. NRCA -       नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एग्रोफोरेस्ट्री 
                                                                                                            14. NRCC-        नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल 
                                                                                                            15. NRCC-       नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर  सिट्रस
                                                                                                            16. NRCC -       नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर KESU(काजू)
                                                                                                            17. NRCCF-      नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कोल्ड वाटर  फिशरीज
                                                                                                            18. NRCG-        नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्राउंड नट (मूंगफली)
                                                                                                            19. NRCIPM-   नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड वेस्ट मैनेजमेंट 
                                                                                                            20. NRCM-       नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मीट
                                                                                                            21. NRCMRT-    नेशनल सेंटर फॉर मशरुम रिसर्च एंड ट्रेनिंग
                                                                                                            22. NRCPB-      नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन प्लांट बायोटेक्नोलॉजी 
                                                                                                            23. NRCS-        नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर सोरघम 
                                                                                                            24. NRCAH-      नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एग्रीकल्चर 
                                                                                                            25. NRCB-      नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बनाना
                                                                                                            26. NRCG-      नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ग्रेप्स 
                                                                                                            27. NRCIPM-     नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट
                                                                                                            28. NRCMAP-    नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मेडिसिन एंड एरोमेटिक प्लांट 
                                                                                                            29. NRCO-         नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर आयल पाम 
                                                                                                            30. NRCOG-      नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर ओनियन एंड गार्लिक
                                                                                                            31. NRCO-        नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर आर्केड
                                                                                                            32. NRCWT-    नेशनल रिसर्च सेंटर ऑफ वॉटर टेक्नोलॉजी ईस्टर्न रीजन 
                                                                                                            33. NRCM-       नेशनल रिसर्च ऑन मिथुन
                                                                                                            34. NECMMP- नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट एंड मीट प्रोडक्ट
                                                                                                            35. NRCS-        नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर सोयाबीन
                                                                                                            36. NRCWS-    नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर बीड साइंस
                                                                                                            37. NIRJAFT-   नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रिसर्च ऑन जूट एंड एप्लाइड फाइबर टेक्नोलॉजी 
                                                                                                            38. NRCSS-    नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर सीड Spice एज 
                                                                                                            39. NIANP-     नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एनिमल न्यूट्रीशन एंड फिजियोलॉजी
                                                                                                            40. NRCDNA-  नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन डीएनए फिंगर प्रिंटिंग
                                                                                                            41. HSADL-   हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज लेबोरेटरी 
                                                                                                            42. NRCL-     नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर लीची 
                                                                                                            43. NRCM-    नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मखाना 
                                                                                                            44. NRCM-    नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मशरुम

                                                                                                            • अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान(INTERNATIONAL AGRICULTURAL INSTITUE)

                                                                                                            1. CGIAR        कंज़र्वेटिव ग्रुप ऑन इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च 
                                                                                                            2. CGPRT-          कोर्स ग्रेन पल्स रूट ट्यूबर सेंटर 
                                                                                                            3. CIAT -            सेंट्रो इंटरनेशनल एग्रीकल्चर ट्रीपकल
                                                                                                            4. CIMMYT-      सेंट्रो इंटरनेशनल दी एग्रीकल्चर मेज़रमेंट दी  ट्राई गो 
                                                                                                            5. CIP-                इंटरनेशनल सेंटर फॉर पोटैटो 
                                                                                                            6. IBPGR-           इंटरनेशनल बोर्ड फॉर प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज
                                                                                                            7. ICRISAT-       इंटरनेशनल क्राफ्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर  दी   सेंमी  एरिड ट्रापिक्स
                                                                                                            8. IFPRI-              इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट
                                                                                                            9. IITA-              इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आप ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर
                                                                                                            10. ILCA-            इंटरनेशनल लाइव स्टॉक सेंटर ऑफ अफ्रीका
                                                                                                            11. ILRAD-         इंटरनेशनल लेबोरेटरी हार और रिसर्च ऑन एनिमल डिसीसेस
                                                                                                            12. IRRI-             इंटरनेशनल  राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट
                                                                                                            13. ISNAR-         इंटरनेशनल सर्विस फॉर  नेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च 
                                                                                                            14. WARDA-      बेस्ट अफ्रीकन राइस डेवलपमेंट एसोसियन
                                                                                                            15. ICARDA-     इंटरनेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च एंड ड्राइ एरियाज 
                                                                                                            16. ICGEB-        इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी 

                                                                                                            • कृषि अनुसंधान संस्थान (Agricultural research institute)

                                                                                                            1. IAHVB-              इंस्टीट्यूट आप एनिमल हसबेंडरी एंड वेटरनरी बायोलॉजिकल 
                                                                                                            2. IARI-                 इंडियन एग्रीकल्चरल रिजल्ट  इंस्टीट्यूट
                                                                                                            3. ICAR-GOA-      ICAR कांप्लेक्स फॉर गोवा
                                                                                                            4. ICAR-NEH-      ICAR  कांप्लेक्स  फॉर नार्थ ईस्टर्न हील  रीजन
                                                                                                            5. IFGTB-             इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेस्ट जेनेटिक्स एंड  ट्री ब्रांडिंग
                                                                                                            6. IGFRI-             इंडियन ग्रासलैंड एंड फाडर रिसर्च  इंस्टीट्यूट
                                                                                                            7. IGSI-               इंडियन ग्रेन स्टोरेज इंस्टीट्यूट इंडियन
                                                                                                            8. \IIFM-              इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेस्ट मैनेजमेंट 
                                                                                                            9. IIHR-               इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़  हॉर्टिकल्चरल रिसर्च 
                                                                                                            10. IIPR-               इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पल्स रिसर्च 
                                                                                                            11. IISR-              इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सुगरकेन रिसर्च
                                                                                                            12. ILRI-              इंडियन  लेक रिसर्च  इंस्टिट्यूट 
                                                                                                            13. ISARD-          इंस्टिट्यूट फॉर स्टडीज आन एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट
                                                                                                            14. IVRI-             इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट
                                                                                                            15. IWST-           इंस्टिट्यूट ऑफ गुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी
                                                                                                            16. JTRL-           जुट  टेक्नोलॉजिकल रिसर्च लेबोरेटरी
                                                                                                            17. SBI-             सुगरकेन ब्रांडिंग इंस्टीट्यूट
                                                                                                            18. VPKAS-      विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधानशाला
                                                                                                            19. WTCER-     वाटर टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर ईस्टर्न रीजन
                                                                                                            20. PCHS-         प्रोजेक्ट कार्डिनेटर होम साइंस
                                                                                                            21. IISR-            इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पाइस रिसर्च 
                                                                                                            22. IIVR-           इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ वेजिटेबल रिसर्च 
                                                                                                            23. IISS-             इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस
                                                                                                            24. IIFSR-         इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम रिसर्च